Saturday, 30 December 2023

पल बहुमूल्य निकलता जाता

 पल बहुमूल्य निकलता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता

 क्षीण मलीन होती अभिलाषा

अंधकार सी घिरी निराशा

विकल विवश सब सहता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

रुपहली रातों की माया

मन उन्मादी शिथिल सी काया

मोह प्राण का बढ़ता जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

वर्षा धूप शिशिर सब आया

नियति प्रेरणा बन मुस्काया

काल निरंतर दृष्टि रखता

कुछ न कुछ वह कहता जाता.... 

राष्ट्र प्रीति से रहता सब गौण

मुखर चुनौती लेता है कौन 

अपना अंतिम भेंट दे जाता

कुछ न कुछ वह कहता जाता....

भारती दास ✍️


Thursday, 14 December 2023

गतिशीलता ही जीवन है

 

धरती घूमती रहती हर-पल

सूरज-चन्द्र ना रुकते इक पल

हल-चल में ही जड़ और चेतन

उद्देश्यपूर्ण ही उनका लक्षण.

सदैव कार्यरत धरा-गगन है

गतिशीलता ही जीवन है

गति विकास है गति लक्ष्य है

गति प्रवाह है गति तथ्य है.

धक-धक जो करता है धड़कन

मन-शरीर में होता कम्पन

दौड़ते जाते हर-दम आगे

एक-दूजे को देख कर भागे.

लक्ष्य भूलकर सदा भटकते

उचित-अनुचित का भेद ना करते

पूर्णता की प्यास में आकुल

तन और मन रहता है व्याकुल.

संबंधों का ताना-बाना

बुनता रहता है अनजाना

एक ही सत्य जो सदा अटल है

हर रिश्ते नातों में प्रबल है.

जहाँ मृत्यु है वही विराम है

फिर कुछ भी ना प्रवाहमान है

पूर्ण अनंत है ईश समर्पण

जैसे विलीन हो जल में जल-कण.  

भारती दास ✍️


Tuesday, 28 November 2023

हे कोमल करूणाकर स्वामी

 हे ईश्वर करना अनुकंपा

उन सब जीवन को बल देना

क्षण-क्षण पल-पल जूझ रहे हैं

उनके क्रंदन को सुन लेना.

कभी निराशा कभी हताशा

उनकी दृष्टि से हर लेना

संतप्त हृदय को तुष्टि देना

स्वजन स्नेह से भर देना.

अपूर्ण लालसा कसक मिटाना

अधीर कुटीर सुखद कर देना

हास्य विकल मुख पर सजाना

आनंद अति अवलंबन देना.

दुआ यही हरपल सबका है

व्याकुलता मन से हर लेना

हे कोमल करूणाकर स्वामी

पुलकित हर्षित घर कर देना.

भारती दास ✍️

Wednesday, 15 November 2023

श्री चित्रगुप्त नमन


नमन करें श्री चित्रगुप्त की

धर्मगुप्त की मन से

वरदान वो देंगे मगन से.....

इरावती के पुत्र कहाये

मंगलकर्ता बनकर आये

संकट हरते सद्गुण देते

हरते तम जीवन से, 

वरदान वो देंगे मगन से.....

पूर्ण मनोरथ करने वाले

इच्छित फल वे देनेवाले

विद्या बुद्धि वैभव देते

लिखते कर्म कलम से, 

वरदान वो देंगे मगन से.....

रुप चतुर्भुज श्यामल मूर्ति

तीनों लोकों में फैले कीर्ति

जो भी उनके शरण में आते

भक्ति भाव चिंतन से, 

वरदान वो देंगे मगन से.....

नमन करें श्री चित्रगुप्त की..

भारती दास✍️


Saturday, 11 November 2023

दीप पर्व है सहजीवन की

 दीप पर्व है सहजीवन की

एकत्व की कामना करते हैं

श्री गणेश मां लक्ष्मी की

सुभग अराधना करते हैं.

निविड़ तिमिर को चीरता दीपक

झिलमिल जगमग कर देता है

देहरी आंगन चित्त के अंदर

प्रकाश अनंत भर देता है.

उमंग उल्लास का उत्सव हो

लोग सभी यह कहते हैं

आत्मबल सदा संपन्न बने

संघर्ष सदैव ही करते हैं.

महलों को आलोकित करते

बल्ब असंख्य जलाते हैं

दयनीय दीपक कुंठित हो कर

दीनों की कुटिया सजाते हैं.

चंचल चपला मंजू मुखी मां

हर कुटीर में जाती है

निराश नयन में आशा भरकर

आशीष प्रदान कर जाती है.

अपने-अपने सामर्थ्य जुटाकर

विष्ण-प्रिया का अभिनंदन करते 

कतारबद्ध हो दीपक जलते

खुशियों की रश्मियां बिखरते.

सूने-सूने मन के अंदर

ज्योति कांति भर जाती है

उदास अधर को हर्षित करके

संदेश मुखर कर जाती है.

भारती दास ✍️

Saturday, 21 October 2023

दुर्गा प्रार्थना

 जय जग तारिणी विघ्न विनाशिनी

जय आर्या जय भवानी हे

जयति गिरजा वृषभ वाहिनी

जयति जय कल्याणी हे....

आयुध धारिणी भव भय हारिणी

जयति जय रूद्राणी हे

पुरारी भामिनी महा तपस्विनी

जयति जय शर्वाणी हे....

सती स्वरूपा जय जग मोहिनी 

जयति शुभ वर दायिनी हे

शैल नंदनी जगत वंदनी

जयति दुर्गे नमामि हे....

भारती दास ✍️



Sunday, 8 October 2023

परीक्षा(बाल-कविता)

 न हों चैन न कभी आराम

नही लेते पढने से विराम

हर-पल रहता एक ही ध्यान 

है परीक्षा उसी का नाम.

पढने के पीछे सब पड़ते 

पढो –पढो कहते ही रहते

पढने की होती नही इच्छा

देनी पड़ती है परीक्षा.

सबको आगे ही है बढना

पर सबसे इतना हो कहना

क्या होती है ऐसी शिक्षा

देनी पड़ती है परीक्षा.

आश लगी रहती है माँ की

पढने का भी बोझ है काफी

शिक्षक भी करते हैं समीक्षा

देनी पड़ती है परीक्षा.

भारती दास ✍️

Saturday, 23 September 2023

महान-विदुषी नारी कैकेयी

 

नृप दशरथ की दूसरी रानी
नाम थी कैकेयी बड़ी सयानी
थी विदुषी प्रतिभा-सम्पन्न
परम सुन्दरी वीरांगना अनुपम
सती-साध्वी चरित्र था उनका
पति-प्रेम में अटूट सा निष्ठा
राज-कार्य में करती सहयोग
नहीं रखती कुछ मन में क्षोभ
शम्बरासुर के साथ युद्ध में
दशरथ जूझ रहे थे क्रुद्ध में
तब कैकेयी ने दिखायी हिम्मत
सारथी बनकर बचाई इज्जत
राजा दशरथ थे मर्मज्ञ
एहसान मानकर हुए कृतज्ञ
हे प्रिय तुम कुछ ना सोचो
हमसे कोई दो वर मांगों
मेरा है वरदान धरोहर
मांग लूंगी कभी समय पर
यह कहकर कैकेयी मुस्काई
अपनी जीत पर वह हरषाई
अंतर कभी नहीं करती थी
राम की जननी माता सी थी
एक दूजे में था नेह समान
कैकेयी लुटाती रहती जान
दुखद आहट से थी अनजान
समय चला था कुचक्र महान
परम्परा यही चलती थी
ज्येष्ठ पुत्र को ही मिलती थी
राजा की उत्तराधिकारी
राम ही होंगे थी तैयारी
कैकेयी ख़ुशी से झूम उठी थी
पर अनहोनी कुछ और वदी थी
मंथरा नाम की थी दासी खास
जिसने लगा दी द्वेष की आग
दिल-दिमाग से तिक्त हुई थी
करुणा-ममता से रिक्त हुई थी
राजा से मांगी दो वरदान
"भरत-राज्य‘और’वन को राम"
चौदह वर्ष वनवास मिला
कैकेयी को संतोष मिला
राम-राम बस राम कहे
दशरथ जी निज प्राण तजे
इसी घटना ने मोड़ दिया
कलंक से नाता जोड़ दिया
कुमति मति की थी लाचारी
अपने पति की बनी हत्यारी
कुपथ गामिनी बनी अभागी
बनी कलंकिनी जो थी त्यागी
विधि की मोहरा वो सटीक थी
लेकिन प्रेम की वो प्रतीक थी
बन गयी वो घृणा की पात्र
बनी पापिनी मूढ़ कुपात्र
’लेकिन सत्य यही है सबसे
विदुषी महिला थी वो मन से
क्यों फिर ऐसा काम कर गयी
लोक-लाज से वो गड़ गयी
ऋषि-मुनि को सर्व विदित था
विधि की लीला स्व-रचित था
कुल के हित को चाहने वाली
राम को विजय बनाने वाली
भविष्य सुनहरा कर गयी वो
राम की प्रेरणा बन गयी वो
दूर दृष्टि कहते है इसको
जिसने कलंकित की थी खुद को
स्नेह की डोर से बांधता कौन
उत्तर से दक्षिण जाता कौन
जन-जन के मन में समाता कौन
अन्याय रावण का मिटाता कौन
जन ने मन से वहिष्कार किया
उनको सदा ही तिरस्कार किया
पेशेवर नहीं थी वो हत्यारी
नही थी अपराधी व्याभिचारी
पुत्र ने भी उन्हें बैर ही जाना
अशुभ कहा उन्हें गैर ही माना
इससे बड़ा क्या होगा दण्ड
माँ की ममता हो गयी खंड
कैकेयी की अपराध बोध
ग्लानि-नीर से बहा था क्षोभ
पछतायी वो मन से भर-कर
प्रायश्चित की उर से रोकर
पीड़ित-व्यथित-संकुचित हुई थी
आत्म-पीड़ा से दुखित हुई थी
कैकेयी की ये कथा कहती है
निश्चय शुभ सन्देश देती है
कभी किसी की बात में आकर
ना भुलाये चरित्र ये सुन्दर
खुद को पापी-पीड़ित बनाकर
क्यूँ जीना अपमानित होकर
राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया
निर्मल और निष्पाप बनाया.
घृणित नहीं वन्दित हुई वो
निन्दित नहीं पूजित हुई वो
भरत-जननी श्रेष्ठ थी नारी
महान विदुषी दशरथ प्यारी
उन्होंने की जग पे एहसान
देकर शुभ-सुन्दर परिणाम.

भारती दास ✍️

Sunday, 17 September 2023

हे गौरी सुत हे गजबदन

 हे गौरी-सुत हे गजबदन  

एक निवेदन करते हम

झुककर भी मैं पहुँच ना पाती

जहाँ तुम्हारे दोनों चरण 

हे गौरी सुत हे गज बदन .......

मैंने सबसे यही सुना है 

दुखियों में करते विचरण 

खोज खोज के मैं हारी हूँ

कब दोगे दर्शन भगवन

हे गौरी सुत हे गज बदन..........

मेरे जीवन में क्यों होती 

क्षोभ विकलता की उन्मेष 

तेरा अपनापन पाने को

नाथ मैं सह लेती हर क्लेश 

हे गौरी सुत हे गज बदन ..........

अब देर न कर हे लम्बोदर 

अपनी करुणा बरसा मुझपर

मेरे चित-आंगन में रहना 

नमन करूँ मैं जीवन भर      

हे गौरी सुत हे गज बदन.........

Happy Ganesh chaturthi

भारती दास ✍️

Wednesday, 6 September 2023

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

 हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे

हे चक्रधारी बांके बिहारी

पतित पावन गोविन्द प्यारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

वंशी बजैया नाग नथैया

दीन दुखी के सखा सहारे

हे कंसारी मदन मुरारी

गोवर्धन धारी तुम्हें पुकारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

परम मनोहर अगम अगोचर

राधा वल्लभ दरश दिखा रे

ना हममें शक्ति ना भक्ति बल है

शरण में आए हैं हम तुम्हारे 

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

भारती दास ✍️




Saturday, 26 August 2023

रक्षा का पर्व----रक्षाबंधन

 श्रावण शुक्ल-पूर्णिमा अतिविशिष्ट एवम महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है .इस दिन भाई –बहन के स्नेहिल बंधन का पर्व रक्षा –बंधन मनाया जाता है .बहन ,पावन-प्रेम से सरावोर कच्चे धागे को अपने भाई की कलाई पर बाँधती है और इसके बदले रक्षा एवम संरक्षण का वचन लेती है .

                ‘’ रक्षा –बंधन ‘’ऐसा बंधन है जो जिसे भी बांधा जाये उसकी रक्षा का संकल्प किया जाता है. किसी भी रूप में रक्षा का प्रण लेना ही रक्षा बंधन कहलाता है .रक्षा –बंधन के सन्दर्भ में कई कथाएँ प्रचलित है .

मान्यता है कि देवासुर संग्राम में सुर –असुर दोनों ही एक –दूसरे पर विजय प्राप्त करने के लिये युद्ध में विरत थे .

देवता अपने अस्तित्व एवम धर्म के लिये नीति युद्ध कर रहे थे वहीँ असुर अपने अहंकार के लिये साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे. 

 धर्म –अधर्म का ये युद्ध कई वर्षों तक चला और अंत में असुर ही विजयी हुये.पराजय सदा ही पीड़ा,कष्ट एवम चिंता को बढाती है .इस पराजय के बाद देवताओं की स्थिति दयनीय हो गयी थी,तो इंद्राणी ने श्रावण शुक्लपूर्णिमा के दिन विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार कर उसे अभिमंत्रित किया और देवगुरु वृहस्पति ने स्वस्तिवाचन के साथ इंद्रदेव के दायें हाथों में बांध दिया जिसके फलस्वरूप इंद्रदेव फिर से विजय होकर  स्वर्ग के राजा बने.उसी समय से रक्षा-बंधन का पर्व मनाया जाने लगा .

                रक्षा बंधन का ऐतिहासिक महत्त्व मेवाड़ की रानी कर्मवती से जुड़ा हुआ है. गुजरात के राजा बहादुरशाह ने मेवाड़ पर हमला कर दिया और मेवाड़ को चारों ओर से घेर लिया ऐसे संकट के समय में रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजी और सहायता की आशा की, हुमायूँ ने भी राखी की लाज रखी तथा रानी की हर तरह से रक्षा की.  हुमायूँ , बहादुर शाह की ही  जाति का था परन्तु उसने कुछ भी चिंता न करके एक हिन्दू बहन की रक्षा की और सम्मान दिया. इस त्योहार का धार्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व सर्व –विदित है .इससे एकता का भाव प्रवाहित होता है.बहन,भाई को राखी बाँधती है व भाई हर संभव रक्षा करने की वचन देता है. लेकिन वर्तमान समय में राखी का बंधन एक प्रतीक बनकर रह गया है.अपने वचन का निर्वाह कितना कर पाता है ये तो बहनों की दुर्दशा देखकर पता चलता है. हिंसा, हत्या, छेड़-छाड़ और बलात्कार कितने ही घटनायें आये दिन होते रहते हैं. अपनी बहन की रक्षा के वचन देते हैं तथा दूसरे की बहन के साथ गंदी हरकत करते है. क्या यही संकल्प हर वर्ष लेते हैं?कितने ही ऐसे प्रश्न है जिसके उत्तर नहीं मिलते है. हमारा ह्रदय संवेदनशील है या नहीं,इसपे भी शक होता है.

         रक्षा –बंधन ,खूबसूरत व्यवसाय बन गया है .इस दिन ढेरों राखियाँ,मिठाईयां एवम अन्य उपहारों की खूब बिक्री होती है.लोग स्नेह भूल कर मुनाफा ही कमाते है.परंपरा की प्रवाह में रक्षा –बंधन बस एक पर्व रह गया है.वो उत्साह वो उमंग न जाने कहाँ खो गयी है.भाई –बहन एक दूजे के लिए समय नहीं निकाल पाते है,लेकिन इसी बहाने मिलना हो जाता है.हमारी नीरस जिन्दगी में ये त्योहार प्रेम की वर्षा करते है.यह सांस्कृतिक त्योहार विश्व –प्रेम की पुनरावृति कर जीवन में खुशियाँ प्रदान करते है. 

जीवन में सहयोग सिखाता 

सब-जन में उत्साह समाता 

प्रेम-रूप अमृत की वर्षा 

सावन की सौगात है अच्छा.

भारती दास ✍️

Monday, 14 August 2023

हे भारत के संतान श्रेष्ठ

कुछ अनुभूति अंकुरित हुई है 

नव स्फूर्ति विस्तरित हुई है

हे शुभ प्रभात के बाल-श्रेष्ठ

महसूस करो क्या विदित हुई है.

शुभ कर्म करो ना शर्म करो 

संकल्प करो ना विकल्प धरो 

हे लोकहित कल्याण-श्रेष्ठ 

कर्णधार बनो ना प्रहार करो.

बहुत सो चुके बहुत खो चुके 

अब देर करो ना बहुत रो चुके 

हे चेतना के ज्ञान-श्रेष्ठ 

फिर निजता में क्यों सिमट चुके.

यों डरते रुकते ठहरों ना 

आग बढ़कर अब सोचो ना 

हे नव जीवन के प्राण-श्रेष्ठ

बनो समर्थ यूँ ही भटको ना.

अपने अन्दर चिंगारी भर लो 

जोश उमंग बस सारी भर लो

हे शक्तिवान बलवान-श्रेष्ठ 

प्रचंड वेग हितकारी भर लो.

प्रभु की शक्ति साथ खड़ी है 

आशीष की बारिश बरस रही है 

हे भारत के संतान-श्रेष्ठ

समय की धारा बीत रही है.

भारती दास ✍️

Saturday, 29 July 2023

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

 एक पिता ने कहा खेद से

विषम बहुत है सूनापन

नीरव-नीरव वृद्ध नयन यह

खोज रहा है अपनापन.

भूल गया क्या, याद है कुछ भी

था तेरा भोला सा बचपन

नेह वही पाने को मचलता

बूढ़ा सा ये तन-मन हरदम.

भार वेदना का ढोया था

जब नन्हें थे तेरे कदम

तड़प-तड़प से मैं जाता था

जब बहता तेरा अश्रु-कण.

चिर आकांक्षा निष्फल इच्छा

अथाह असीम है व्याकुलतापन

अवसाद अनंत है अकथ विषाद है

व्यर्थ विफल है एकाकीपन.

हूं अंतिम अरुण क्षितिज का

आलोक हीन वैभव विहीन 

विकल दिवाकर डूबता जैसे

मुख मलिन अनुराग हीन.

भारती दास ✍️

Saturday, 22 July 2023

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

 

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

रक्त बहाती जाती बेचारी

तृषित कंठ में विष का प्याला

प्राण गंवाती जाती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

आंसू से भीगे आंचल में

विप्लव भर लेती हरपल में

शापित जैसा जीवन लेकर

अपराधी सी जीती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

कब हंसती कब रो लेती है

क्या पाती क्या खो देती है

बस आहुति देती रहती

निर्मल पावन मन की हारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

व्यथा भार संताप को ढोती

निशि-वासर पीड़ा में होती

घायल तन-मन करता रहता

अधम नीच और दुराचारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

भारती दास ✍️



Saturday, 15 July 2023

बरसो सावन मनभर बरसो

 बरसो सावन मनभर बरसो

शिव के नील-ग्रीवा पर बरसो

बेला गुलाब चंपा पर बरसो

पेड़ों के झूमते शाख पर बरसो

खगों के गाते पाख पर बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

रज के हर कण-कणमें बरसो

मृदु गुंजन कर आंगन में बरसो

चंचल मुख आंचल में बरसो

नन्हे-नन्हे करतल में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

पर्वत मैदान नदी में बरसो

झाड़-फूस की कुटी में बरसो

भीख मांगती मुट्ठी में बरसो

भावविहीन कुदृष्टि में बरसो

बरसो सावन मनभर बरसो....

भारती दास ✍️



Saturday, 8 July 2023

आंसू

 आँसू की क्या दूं परिभाषा

इसकी नहीं है कोई भाषा

गम में, दुःख में, सुख में सब में

आहत होती ये जब तब में

याद आये जो बीते कल की

तो बस झट से आखें छलकी

किसी से जब कुछ कह नही पाए

आँसू मन की व्यथा बताये

समर्पण में छलक जाता 

सुहाने पल में हँस देता 

दुआ में भी ये रहता है

दया के साथ जीता है

नयन से जब भी बहता है

विधाता की ये श्रद्धा है

खुदगर्जी नहीं होती इसकी

सादगी हरदम इसमें होती

कुछ भी हो पर समझ यही है

हर पल सबके साथ वही है.

भारती दास ✍️


Saturday, 24 June 2023

अनुकरणीय ये ग्रंथ है

 तुलसी के रामायण की

महिमा है कुछ खास 

अनुकरणीय ये ग्रंथ है

विद्वजन कहते  उल्लास.

रघुकुल भूषण रामजी 

थे आज्ञाकारी पुत्र

तरुण तपस्वी बने सदा 

पूर्ण किये कर्म सूत्र.

सर्वप्रथम वे मित्र जो

नहीं रखते हैं द्वेष

आपत्ति के काल में

हरते मन के क्लेश.

द्वितीय माता जानकी

थी पत्नी आदर्श

श्रीराम जी के साथ में

वन में सही थी कर्ष.

तृतीय सौमित्र पुत्र वे

तत्क्षण हुए अधीर

सेवक बनकर चल पड़े

संग सिया-रघुवीर.

चतुर्थ कैकेयी सुत महान

छोड़ कर सिंहासन राज

चरण पादुका अराध्य के

किये मानकर काज.

पंचम अंजनी लाल बिना

विकल हुए भगवान

द्रोणागिरि ऊठा लाये

बलशाली हनुमान.

षष्ठम गुरु के चरण में

रख देते जो शीश

समस्त वैभव संपदा

उन्हें देते हैं जगदीश.

सप्तम भक्त की आस्था

शबरी मां का स्नेह

जूठे बेर खाकर प्रभु

हर्षाये अति नेह.

संबंधों को प्रेरणा

देता है ये ग्रंथ

है जीवन की संजीवनी

हर दोहा हर छंद.

भारती दास ✍️


Sunday, 18 June 2023

रथ पर आये श्याम सलोने

 

उष्ण-तरल का सुखद मिलन है

शांत हुई बूंदों से तपन है 

आकाश में बादल छाये हैं

धरती की प्यास बुझाये हैं

समस्त सृष्टि के पालनकर्ता 

अर्जुन के प्यारे प्राण सखा

अधर्म का अंत करने के हेतु 

धर्म की आस्था जगाने हेतु 

सारथि बनकर रथ हांके थे

भूमि का क्षोभ संताप देखे थे 

नज़रें जहां भी जाती छल था

विविध क्लेश को सहता मन था

अधरों पर स्मित था निश्छल

थे बलिदानी वे त्याग के संबल 

दीन जनों के बने सहारे 

कठिन क्षणों में उन्हें उबारे

पीताम्बर धारी भगवान

लाये भक्ति का पैगाम  

भक्तों में उत्साह जगाने

रथ पर आये श्याम सलोने.  

भारती दास ✍️

Saturday, 10 June 2023

धरती गगन के मौन गूंज को

 धरती गगन के मौन गूंज को

चाहिए केवल प्रखर विचार

ओज तेज भर पाये उर में

चाहिए ऐसे प्रवीर अवतार.

एक विकृत-विकार था रावण

जिसने मर्यादा को ध्वस्त किया था

उत्पात मचाकर अधर्म बढ़ाकर

ऋषि मुनि को नष्ट किया था.

बरसों से था कुंठित दानव

पशुता जैसा ही था संस्कार

स्वार्थी कपटी था अंतर से

मन से दरिद्र भी था अपार.

नित्य कुकृत्य करता रहता था

नित्य बहाता रक्त की धार

अस्थि नोच खाता चंडाल

सुनता नहीं भीषण चीत्कार.

कहीं सुरक्षित नहीं है पुत्री

अपनी जानें गंवा रही है

झूठे प्रेम के जाल में फंसकर 

ख्वाब अनेकों मिटा रही है.

अध्यात्म क्रांति के द्वारा ही

परिवेश सशक्त बनाना होगा

अत्याचारी दूषित स्वरूप को

सर्वधर्म प्रीत निभाना होगा.

भारती दास ✍️


Tuesday, 30 May 2023

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

 मां गंगे की शीतल प्रवाह

अनेक उपासक अनेक है चाह

मर्म वेदना विकल कराह

दुःख चिंता विचलित सी आह

विस्तृत नीरव सलिल पावनी

पाप शाप हरती सनातनी 

प्रबोध दायिनी मोक्षदायिनी

देवनदी की जल सुहावनी 

बेटियों को बना सारथी 

राजनीति करते महारथी 

पदक विसर्जन में शान कहां है

वो गौरव अभिमान कहां है

देश के लिए मरनेवाले

अनीतियों से लड़नेवाले

कांटों पर ही चलते हैं

स्वयं ही राहें बनाते हैं

शील सादगी सज्जनता का

क्षमा दया करुणा ममता का

दीप जले निज अंतर्मन में

सुख पाये हरदम जीवन में

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

बोध सुभग हर उर में भर दे.

भारती दास ✍️


Friday, 12 May 2023

माँ

 


एहसास मुझको है अनेकों 

है अनगिनत अनुभूतियाँ

है अनोखी  पुलक भरी

 ह्रदय  में  स्मृतियाँ.

स्नेहिल स्मरण से भरे हैं

ये मेरे मन और प्राण

माँ तुम्ही से है भरे

उर में सपनों की जहान.

यादों के घन सघन बन

उमड़ पड़ते हैं पलक पर

बरस पड़ते हैं वहीं से

नयन ये दोनों मचल-कर.

जीवन विकल होती अगर

तो याद होती है दवा

तुम्हारे स्नेह का आँचल 

हमें देती है शक्ति सदा.

हर चोट में हर क्षोभ में 

केवल तुम्ही हो पास माँ 

लगता हमें हर दर्द की

हरपल तुम्ही हो आस माँ.

छोटी बड़ी गलती हुई हो

या कोई अपराध सा

तुमने किया हरदम क्षमा

देकर नयी कुछ सीख सा.

आज मै भी माँ बनी हूँ

तेरे गम को जानती हूँ

तेरी पीड़ा को समझ कर

सर झुकाना चाहती हूँ.

भारती दास ✍️

Wednesday, 3 May 2023

रुग्ण मानवता के वैद्य

 


नेपाल की तराईमें एक राज्य था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी. वहां के राजा शुद्धोधन थे. वैशाख पूर्णिमा के दिन महातपस्वी भगवान बुद्ध ने जन्म लिया था. उनके जन्म के कुछ दिन बाद ही उनकी माता महामाया का देहांत हो गया. उनकी मौसी गौतमी के द्वारा लालन-पालन होने की वजह से उनका नाम गौतम पड़ा.

                              भगवन बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. वे क्षत्रिय थे और राजा का पुत्र भी इसलिए उन्हें युद्ध के सारे कौशल एवम सभी प्रकार की शिक्षा दी गयी. सिद्धार्थ युवा हुए, यशोधरा उनकी महारानी बनी, राहुल के रूप में उनको पुत्र मिला. वे अत्यंत संवेदनशील थे, शिकार करने के बजाय वे सोचते थे कि पशु-पक्षियों को मारना क्या उचित है ? ये पशु-पक्षी बोल भी नहीं सकते, उनका मानना था कि जिसे हम जीवन नहीं दे सकते, उसका जीवन लेने का कोई अधिकार नहीं है. प्रचंड वैराग्य, अनूठा विवेक युवराज सिद्धार्थ के मन में उत्पन्न होने लगा जो अदृश्य रूप में, अनंत काल से उनके अंतःकरण में उपस्थित था. खुली आँखों से सकल चराचर को अपलक निहारते रहते थे. औरों की पीड़ा उनको अपनी पीड़ा प्रतीत होती थी. संसार के समस्त दुःखों से छुटकारा प्राप्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए, एक दिन रात्रि में चुपके से पत्नी व पुत्र को सोता छोड़कर महल से बहार निकल गए. जगह-जगह घूमने लगे. कई दिनों के पश्चात् वे गया पहुंचे वहीं एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने लगे. कठिन तपस्या से देह दुर्बल और क्षीण हो गयी. जर्जर हो चुके सिद्धार्थ को सुजाता नाम की एक महिला ने खीर खिलाई, उनकी देह को ही नहीं, उनकी जीवन चेतना को भी नवजीवन मिली. उसी क्षण उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे गौतम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए.

                  ‘’  भगवन बुद्ध ने दुःख से मुक्ति के लिए आठ उपायों को बताया है जिसे आष्टांगिक मार्ग कहा गया है ------------

सम्यक दृष्टि-----कामना व वासना की धारणा को छोड़ सबको एक समान देखना व समझना.

सम्यक संकल्प ------हठ एक प्रकार का अहंकार है जो करने योग्य है सही हठ करना तथा स्पष्ट उद्देश्य के साथ जीना.

सम्यक वाणी --------सभी अर्थों में,दृष्टि में और संकल्प में वाणी का दोषमुक्त होना ही सम्यक वाणी है. 

सम्यक कर्मात--------वही कर्म करना जिससे पवित्र जीवन व्यतीत हो अहिंसा का पालन हो.

सम्यक आजीविका ---------उसी आजीविका का चयन हो जिससे जीवन में शांति आये, हिंसा न हो और अति न हो.

सम्यक व्यायाम -----------शरीर की गतिशीलता अनिवार्य है न अति आलस हो, न अति कर्मठता, दोनों ही नुकसानदेह होते हैं.

सम्यक स्मृति ---------व्यर्थ को भूलना और सार्थक को स्मरण रखना जिससे जीवन सरल हो.

सम्यक बोध -----------खुद में होश हो,  जाग्रति हो,  धैर्य हो, सहनशीलता हो , संवेदना हो.           [ भारतीय संस्कृति और अहिंसा ] से "

              आतंकवाद, दंगे, युद्ध, समाज की वे भीषण बीमारियाँ है जिसके दुष्परिणाम हर किसी को झेलने पड़ते हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति समाज की तब भी थी जब भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ था. उस समय भी मानव भटक गए थे, गलत मार्ग पर अग्रसर थे, अकारण दूसरों को कष्ट दे रहे थे. आज भी हिंसा से जूझते मानव को सही राह पर चलने के लिए भगवन बुद्ध की उन्ही शिक्षाओं की जरुरत है जो आतंक-हिंसा व नकारात्मक प्रवृति से हटाकर शुचिता के मार्ग पर ले चले. अब संवेदना बची नहीं, इंसानियत रही नहीं, न प्रकृति का ध्यान न जीव- जंतुओं की चिंता यहाँ तक कि अपना भी ध्यान नहीं है. अपने ही स्वार्थ लोभ-लालच में मानवता के अस्तित्व को गवाने पर उतारू हो गए हैं जो दुखी हो जिसके विचार अच्छे नहीं हो उसे कोई सुखी नहीं बना सकता. प्राणियों में श्रेष्ठ होने के कारण मानव प्रयत्न जरुर कर सकता है अपना जीवन व्यवस्थित बना सकता है. 

               काल के प्रवाह में क्षण - दिवस और वर्ष बीते हैं वैशाख पुर्णिमा के सत्य का बुद्धत्व का वही चाँद हमेशा निकलता है जिसकी चांदनी की छटा निराली होती है. आज भी मानव जीवन के लिए बुद्ध उतने प्रेरणाप्रद है जितने सदियों पूर्व थे. जिन ओजस्वी वाणी को सुनकर दैत्य अंगुलिमाल का जीवन बदला, बर्बर अजातशत्रु में बदलाव आया, सम्राट अशोक में परिवर्तन हुआ वही सन्देश आज भी हमें प्रेरित करते है. हमारी रुग्न मानवता को नव जीवन प्रदान करने के लिए भगवन बुद्ध के उपदेशों को अपनाना  

ही होगा.

भारती दास ✍️

                                                     

                                                             

        


Saturday, 22 April 2023

वृक्ष हमें तो जीवन देती

 वृक्ष हमें तो जीवन देती 

सांसों में खुश्बू भर देती 

सूरज की किरणों से बचाती 

नभ से जल की बूंदे लाती 

हरियाली वृक्षों की न्यारी 

धरती लगती प्यारी-प्यारी 

कोयल गाती कुहू-कुहू कर

पेड़ों की डाली में छुपकर 

वृक्षों की छाया फल-फूल

प्राण-पोषण के अनुकूल 

नदी,पर्वत पेड़ और जंगल

देव रूप बन करता मंगल

पीपल बरगद और आंवला 

पेड़ है ये सब पूजा-वाला 

हर घर शोभे तुलसी पावन

ईश समर्पित सुख-मय आँगन 

पर्यावरण पर प्राणी आश्रित 

इक-दूजे से होते प्रभावित 

प्रकृति की हर घटक बचाये

पर्यावरण को स्वस्थ बनाये.

भारती दास ✍️

Saturday, 15 April 2023

सुगम करु राह हे जननी

 सुगम करु राह हे जननी

शरण में आबि बैसल छी

हरू व्यवधान जीवन सं

अहीं से आस धयने छी

सुगम करु राह हे जननी....

नै पूजा पाठ हम कयलहु

नै मन से मंत्र के जपलहुं

सांसारिक मोह में हरदम

समय व्यर्थे गंवोंने छी

सुगम करु राह हे जननी....

अहां सं कि छिपल हमर

करु एहसान हमरा पर

जगत के तारिणी अंबे

अहां सबटा जनैते छी

सुगम करु राह हे जननी....

किया करूणा छिपौने छी

कथी लय रोष कयने छी

क्षमा करु दोष जगदम्बे 

अहीं के नाम जपने छी...

भारती दास ✍️


Sunday, 2 April 2023

श्रम का मूल्य

 शून्य रुप में पड़ी थी मिट्टी

सबकी ठोकरें खाती थी

मन मसोस कर रहती थी

बिना लक्ष्य के जीती थी.

एक कुम्हार ने आकर श्रम से 

मिट्टी को खोदा और गूंथा धा

फिर चाक पर खूब घुमाकर

आगों के अंदर झोंका था.

तपकर जलकर उस मिट्टी ने

अनेक रुपों में आकार लिया 

मटका बनकर प्यास बुझाई

गमलों में स्वप्न साकार किया.

श्रम का मूल्य सदा मिलता है

तन का भी होता उपयोग

बेशक कष्टों से होता सामना

लेकिन सुकर्म का होता योग.

बदल स्वयं को सद्कर्म करे जो

वो सर्व हितकारी बन जाता है

अपराधी दुष्कर्मी अधर्मी 

विध्वंस कारी बनकर जीता हैं.

भारती दास ✍️

Wednesday, 29 March 2023

आया पावन मंगलकारी

 आया पावन मंगलकारी

श्री रामचंद्र का जन्म दिवस

हे प्रेरणाओं के प्रकाश पूंज 

हर लो धरती से अज्ञान तमस.

असुर अंत करने के हेतु

नारायण ने अवतार लिया

संस्कृति के आदर्शों को

कण कण में साकार किया.

एक पत्नी का व्रत लेकर

हर नारी को सम्मान दिया

बहुपतियों के कुरीतियों से

समाज का कल्याण किया.

हे पुरुषोत्तम  पौरुष महान

समत्व भाव का नेह जगाओ

हे आदर्श रूप भक्तों के प्राण

अंतस से कल्मष मिटाओ.

भारती दास ✍️


Sunday, 19 March 2023

वो पाठशाला कहाते हैं

 देवमंदिर के प्रांगण जैसे

श्रद्धावत शीश नवाते हैं

जीवन-पाठ जहां पर पढ़ते

वो पाठशाला कहाते हैं.

हर दिन कुछ नया सिखाते

शिष्टाचार समझाते हैं

अनुशासन की सीख से सारे

सदाचार अपनाते हैं.

उज्जवल भविष्य जहां पर देते

अमूल्य ज्ञान सब पाते हैं

सद वाचन से पोषित करते 

सरल सौम्य बनाते हैं.

पवित्र-पावन हरदम होता 

गुरु शिष्य के नाते हैं 

पथ सुभग आनंदित होता

ज्ञान लक्ष्य को पाते हैं.

भारती दास ✍️



Saturday, 11 March 2023

भ्रष्टाचार

 


अभी अचानक नहीं है निकला,              
मानव हृदय को जिसने कुचला,                
विविध रूपधर भर धरती में
अवलोक रहा है बारंबार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है
जन है जग है मोह कई है
कला नहीं है भाव विवेचन
दयनीय है जीवन के सार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
कौन सन्देशा बांटें घर-घर,
किसके भरोसे चले हम पथ पर
किसके जीवन का हो उपकार
नष्ट-भ्रष्ट है व्यक्ति संसार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
जोर-शोर से कभी चिल्लाकर,
कभी हवा में महल बनाकर,
फिर विलीन हो जाते सहसा,
घोष भरा विप्लव अपार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
निर्भयता थी जिनकी विभूति
पावनता अबोध थी जिनकी
जो शिवरूप सत्य था सुन्दर
बिखर गए जग के श्रृंगार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
आह्लाद कभी तो अश्रुविषाद
वेद विख्यात मिथ्या नहीं बात
कल को नहीं किसी की याद
जगत की कातर चीत्कार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
लूटकर परसुख सदा निरंतर
जीविका हरते मूढ़ सा मर्मर
मानव मन कुछ तो चिंतन कर
जीवन के सन्देश थे चार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
जीवन हो रहा उपेक्षित
लक्ष्य कर्म दृष्टि से वर्जित
प्रेरणाशक्ति क्यूँ है वंचित
कल को रच दो  नवसंसार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
गिन के हैं सब के दिनचार
फिर भी मची है हाहाकार
युग-युग के अमृत आदर्श
विम्बित करती है जीवन भार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
कर्मठ विनम्र मंगलपथ साधक
सत्य न्याय सदगुण आराधक
जन-जन बने अगर आविष्कारक
लोकहित का जो करे विस्तार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
हे विधि फिर सुवासित कर दो
इस जग को अनुशासित कर दो
हे दयामय फिर लौटा दो
आनंद उमंग और शिष्टाचार
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार....
भारती दास ✍️

Saturday, 4 March 2023

हे बसंत तुम सुनो पुकार

 हे बसंत तुम सुनो पुकार

यूं बीमार कर मुस्काते हो

क्यों बैरी सा करते व्यवहार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

तेरे आने से ही पहले

कांप उठा मन उर भी दहले

संभल संभलकर मैं हूं रहती

फिर भी कर देते लाचार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

सालों से नहीं खेली होली

रंग गुलाल और हंसी ठिठोली 

देख देखकर मैं हूं तरसती

रोता बिलखता चित्त बेजार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

तेरी खूबी अब नहीं लिखूंगी

मजबूरी सब अपनी कहूंगी

रिश्ते नाते मित्र समझते

जाती नहीं मैं किसी के द्वार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

कहते लोग है बसंत सुहाना

मैं देती हूं तुमको ताना

दुआ में सारी रातें गुजरती

जाऊं कहीं ना जीवन हार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

भारती दास ✍️

Saturday, 25 February 2023

ऐ जाग जाग मन अज्ञानी

 


ऐ जाग जाग मन अज्ञानी

ये जग है माया की नगरी

अभिमान न कर खल-लोभ न कर

सब रह जायेगा यहीं पर धरी

ऐ जाग.......

लघु जीवन है ये सोच जरा

सब मिथ्या है ये सत्य बड़ा

मत विचलित हो उत्साह बढ़ा

कर कर्म सभी गर्वों से भरी

ऐ जाग.......

निज स्वप्न में डूबे मत रहना

ये मोह है रोग तू सच कहना

आनंद भरा जीवन पथ हो

गुजरे सुन्दर ये पल ये घड़ी

ऐ जाग.......

अब क्या मांगू फैलाकर हाथ

          विधि ने ही सजाया दिन और रात  

ये रात गुजर ही जायेगी 

      दिन निकलेगा किरणों से भरी

ऐ जाग.........

भारती दास ✍️


 

Saturday, 11 February 2023

पुष्प


पुष्प
वृक्ष के ह्रदय  का
आनंद होता पुष्प
उल्लास अभिव्यक्ति का
आवाज होता पुष्प
पवित्र भावनाओं का
प्रतीक होता पुष्प
सुकोमल संवेदना का
चित्र होता पुष्प
कहता है सुमन
हे श्रेष्ठ मानव जन
निराशा के कुहासे से
जरा बाहर निकल
हो जा समर्पित लक्ष्य में
फूलों के समान
है धरोहर सीख मेरी
गहरी सी मुस्कान
कल्पना में रंग भरकर
उड़ चलो ऊँची उड़ान
मस्त रहे उन्मुक्त हो कर
है जब तक ये अपनी जान.

भारती दास ✍️

Saturday, 4 February 2023

तुलसी के मानस में राम

 


ह्रदय के सुन्दरतम भूमि में

जिनके बुद्धि हुये महान

मेघ रूप वो साधु बनकर

बरसाये मंगल घट गान.

सुन्दर शीतल सुखदाई सम

मानसरोवर के वो नाम

मंगलकारी तुलसी जी के

मानस में रहते हैं राम.

जनहित के हर सूत्र पिरोकर

युग प्रश्नों का कर समाधान.

भक्ति साधना की अनुभूति से

निहाल होते हैं विवेकवान.

बहुरंगे कमलों का दल हो

वैसे ही दोहा छंद की पंक्ति

सुन्दर भाव अनुपम सी भाषा

जैसे पराग सुगंध की शक्ति.

बंधकर भी निर्बंध रहे जो

मोहपाश में कभी ना आये 

कष्ट सहिष्णु परम भक्त वो

खल गण के भी उर में समाये.

निर्मल मन ही वह माली है

जिस पर ज्ञान का लगता फूल

भगवत्प्रेम के जल से सींचकर

कुटिल मन होते अनुकूल.

मानस के सातों सीढी से

जीवन सार दिये हैं सबको

रामचरित को रचने वाले

उनके चरणों में नमन अनेकों.

भारती दास ✍️


Wednesday, 25 January 2023

सरस्वती वंदना

 हे सरस्वती जय मां भगवती

हंस वाहिनी कुमति तू हरती ....

प्रनत पालिनी जय जगदम्बे

पुस्तक धारिणी मूढ़ता हर दे

विद्या बुद्धि ज्ञान बढ़ाती

हंस वाहिनी कुमति तू हरती....

तेरी महिमा मैं क्या जानूं

जड़ बुद्धि हूं क्या पहचानू

वीणा में संगीत जो भरती

हंस वाहिनी कुमति तू हरती....

पद्म वासिनी मुझको वर दे

मेरे उर में अमृत भर दे

अज्ञानों में तू ही विचरती

हंस वाहिनी कुमति तू हरती....

भारती दास ✍️

Thursday, 12 January 2023

पहाड़ का दर्द

 पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़

इस हाल का कौन है जिम्मेदार

सूनी गलियां सूना आंगन

है दहशत में सबका आनन

भींगे नयनो में आह भरा है 

पीड़ा करूणा अथाह भरा है 

उत्कर्ष का अवसर गौण हुआ 

तप-ज्ञान प्रखर भी मौन हुआ 

ये श्रृंग जब तक था सुखद

परमार्थ की सेवा में था रत

अब सजल कंठ से रोते हैं

विविध व्यथा में जीते हैं

क्षोभ से शैल दरक रहे हैं 

मनुज प्राण भी सिसक रहे हैं 

स्वार्थी बनकर मानव रहा है

प्रकृति कोष विपदा ही सहा है

निदान सही हो समाधान

रहे सुरक्षित गिरि महान.

भारती दास ✍️