Saturday, 4 March 2023

हे बसंत तुम सुनो पुकार

 हे बसंत तुम सुनो पुकार

यूं बीमार कर मुस्काते हो

क्यों बैरी सा करते व्यवहार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

तेरे आने से ही पहले

कांप उठा मन उर भी दहले

संभल संभलकर मैं हूं रहती

फिर भी कर देते लाचार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

सालों से नहीं खेली होली

रंग गुलाल और हंसी ठिठोली 

देख देखकर मैं हूं तरसती

रोता बिलखता चित्त बेजार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

तेरी खूबी अब नहीं लिखूंगी

मजबूरी सब अपनी कहूंगी

रिश्ते नाते मित्र समझते

जाती नहीं मैं किसी के द्वार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

कहते लोग है बसंत सुहाना

मैं देती हूं तुमको ताना

दुआ में सारी रातें गुजरती

जाऊं कहीं ना जीवन हार

हे बसंत तुम सुनो पुकार....

भारती दास ✍️

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