जब सुख संध्या घिर आती है
अनुराग-राग बरसाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
सूर्य किरण ढल जाती थककर
सांझ स्नेह बरसाती सजकर
अरुनाभ अधर मुस्काती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते
संग कृषक के पशु घर आते
आह्लाद सूकून भर लाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
निशा नशीली आती मनाने
भाल चूम लगती हर्षाने
रक्ताभ नजर इठलाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
भारती दास ✍️