ऐ जाग जाग मन अज्ञानी
ये जग है माया की नगरी
अभिमान न कर खल-लोभ न कर
सब रह जायेगा यहीं पर धरी
ऐ जाग.......
लघु जीवन है ये सोच जरा
सब मिथ्या है ये सत्य बड़ा
मत विचलित हो उत्साह बढ़ा
कर कर्म सभी गर्वों से भरी
ऐ जाग.......
निज स्वप्न में डूबे मत रहना
ये मोह है रोग तू सच कहना
आनंद भरा जीवन पथ हो
गुजरे सुन्दर ये पल ये घड़ी
ऐ जाग.......
अब क्या मांगू फैलाकर हाथ
विधि ने ही सजाया दिन और रात
ये रात गुजर ही जायेगी
दिन निकलेगा किरणों से भरी
ऐ जाग.........
भारती दास ✍️