Saturday, 28 June 2025

मही वंदिनी

 

मही वंदिनी करती गुहार

करो बैर न यूँ ही प्रहार

करते रहे घायल ये मन

चिथड़े किये आँचल-वस

नहीं शोभता जननी पर वार

मही वंदिनी करती गुहार....

रक्तों का होता है प्रवाह

अंग-अंग में है दर्द आह

बहता है दृग से अश्रु धार

मही वंदिनी करती गुहार....

तुम सारे मेरे पूत हो

नहीं भिन्न कोई रुप हो

चित्त से मिटाओ भ्रम विकार

मही वंदिनी करती गुहार....

सासों में बहता समीर है

मृदु गात पर अन्न नीर है

सहते कई पीड़ा का भार

मही वंदिनी करती गुहार....

ये सूर्य चंद्र उपहार है

निज सभ्यता ही संस्कार है

रखते मुखर आपस में प्यार

मही वंदिनी करती गुहार....

भारती दास✍️ 

 

Friday, 13 June 2025

विमान के विनाश का पल

 विमान के विनाश का पल

देखकर नेत्र हो गये सजल

ज्वालामुखी सा भीषण विस्फोट 

कैसे हुआ, है किसकी खोट

अनगिनत लाशों को लपेट  

लोहित अस्थियों को समेट

काल का तांडवमय सा नृत्य 

मूर्छित मुख श्मशान सा दृश्य 

क्रंदनमय था हाहाकार 

स्तब्ध लोग सुने चीख पुकार 

करूण विलाप विकल सी नाद

दर्द वेदना अगम सी विषाद 

अफ़रा तफ़री दौड़ धूप 

मृत्यु अथाह वीभत्स रूप 

किसे पता था है अंतिम क्षण 

अब नहीं होगा अपनों से मिलन

नन्हे नन्हे मासूम अनेक 

भेंट मौत के चढ़े प्रत्येक 

हे ईश्वर उन्हें सद्गति देना

निज चरणों की अनुरक्ति देना 

उन परिजन को शक्ति देना 

जिनका कुंज हो गया है सूना।

भारती दास ✍️ 


Wednesday, 4 June 2025

ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक

 

रवि की प्रखरता चरम पर होती

तीव्र गर्म हवायें चलती

भीषण तपन दोपहर की होती

अकुलाहट तन-मन में होती|

प्रकृति का है अलग ही तंत्र

रहे शाश्वत उद्गम और अंत

बरसेगा जब अम्बू तरंग

ताप का ज्वाला होगा मंद|

ज्येष्ठ माह है बड़ा ही व्यापक

बड़ा मंगल है मंगलकारक

शनि-विष्णु है मोक्ष प्रदायक

वट-सावित्री भी शुभफलदायक|

संयम सेवा तप है सुखकारी

श्रीराम-हनुमान की भेंट है न्यारी

गंगा-दशहरा पावन पुण्यकारी

गायत्री जयंती भी है हितकारी|

भक्ति-शक्ति की रीत अनुपम है

अध्यात्म-धर्म की सीख परम है

उष्ण-तरल का प्रगाढ़ मिलन है

चिर-मंगल का साध सघन है|

भारती दास ✍️ 

 

Friday, 30 May 2025

जीवन साँसें बहती है

 जीवन साँसें बहती है

स्वर्ण प्रात में, तिमिर गात में

जब मूक सी धड़कन चलती है

तब जीवन साँसे बहती है|

नवल कुन्द में, लहर सिंधु में

जब चाह मुखर हो जाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

घन गगन में, धवल जलकण में

जब रिमझिम बूंदें गाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

मधु-पराग में, भ्रमर-राग में

जब चंचल कलियाँ हँसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

रवि के ताप में, पग के थाप में

जब गति शिथिल हो जाती है

तब जीवन साँसे बहती है|

प्रिय की आस में, हिय की प्यास में

नयन विकल हो बरसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

भारती दास ✍️

Monday, 12 May 2025

जीवन प्रकृति के साथ है

 

भगवान बुद्ध ने साधा योग

छोड़कर राज पाट और भोग

शरीर को उन्होंने गला ही डाले

मन को अपने तपा ही डाले

हड्डी ही हड्डी रह गये थे

पेट पीठ में मिल गये थे

कमजोर वो इतने हो गये थे 

अपने आप न उठ सकते थे

ध्यान-मग्न में वे बैठे थे

दृग दुर्बल हो बंद हुये थे,

चौंक गई थी देवी सुजाता

प्रकट हुये हैं स्वयं विधाता

वृक्ष देव की पूजा करती थी

पूनम को खीर चढ़ाती थी

स्नेह नीर से पग को धोई

श्रद्धा से भरकर खीर खिलाई

बुद्ध देव को शक्ति आई

भक्ति सुजाता की मन भाई

फिर उनको ये ज्ञात हुआ

अबतक जो आत्म घात हुआ

नेत्रों में बिजली कौंध गई

बरसों-बाद साधना फलित हुई,

सब व्यर्थ है सब नाहक है

तनाव चिंता दुख पावक है

जीवन प्रकृति के साथ है

अहिंसा सुखद एहसास है

मन के देव हैं सहनशीलता

लक्ष्य तक जाता है गतिशीलता

सार्थक सोच से सुख पाता है

पथ मिथ्या अवरुद्ध करता है।

भारती दास ✍️ 

 

    

Sunday, 4 May 2025

विनाश का दीप जला बैठा है

 


 

धरती माता बिलख रही है

क्रूर आतंक के डंकों से

कब तक यूँ बलिदान करेंगे

पुत्र को अपनी अंकों से|

विनाश का दीप जला बैठा है

पाप के सौदागारों ने

निर्दोषों को मारता रहता

पाषाण हृदय खूंखारों ने|

द्वेष भाव से भरी आत्मा

शोणित ही तो बहाती है

दुर्भावों के पोषण से ही

प्रपंच अनेकों रचती है|

शैल शिखर स्तब्ध चकित है

देखकर उन हत्यारों को

रक्त-बीज सा रक्त-पिपासु

रिपु-घाती गुनाहगारों को|

धरा वंदिनी माँ के सम्मुख

मौत सुतों की होती है

दुर्भाग्यों को नियति मानकर

विवश सी आँसू बहाती है|

भारती दास ✍️

Saturday, 26 April 2025

 

     सेवा निवृति के अनमोल क्षण

अनुपम सेवाओं के द्वारा सबके दिलों में राज करने वाले चिकित्सक अपने कार्यकाल से अप्रैल माह में सेवा निवृत हो रहे हैं| 33 वर्षों के कार्यकाल में वे जहाँ भी रहे वहाँ उनको लोगों का भरपूर स्नेह,आदर और सम्मान मिला| उन्होंने कभी भी गरीब और अमीर में फ़र्क नहीं समझ| वे हमेशा ही ईमानदारी से काम करते रहे|यही विशेषता व विनम्रता उनकी खास रही|

व्यावहारिक तथा पारिवारिक जीवन में भी वो सबको साथ लेकर चलते रहे| यथायोग्य सबकी सेवा करते रहे| उन्होंने स्वयं की कष्टों पर ध्यान न देकर दूसरों की व्यथा का निदान करने का प्रयास किया|

लोक जीवन के मूल्यों को समझकर अथक परिश्रम करते रहे| अपने कार्य क्षेत्रों में आधुनिक प्रयोग कर हमेशा सफ़ल रहे| वे मन और हृदय से अत्यधिक ही कोमल व उदार स्वभाव वाले हैं| उनके मस्तिष्क में किसी के लिए बैर या दुराव नहीं रहा है| उन्होंने कितने ही छात्रों को,अनेकों जरूरतमंदों को आर्थिक सहायता भी की है| छोटी-छोटी खुशियों से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है| इसीलिए ईश्वर ने उन्हें सुंदर कल्याण कारी गुणों से सुवासित किया है|

सद्भावना का प्रभाव मनुष्य के कर्म को छू लेता है तथा उन्नति के शिखर पर ले जाता है| पीड़ा से मुक्ति पाने की प्रसन्नता मनुष्य को अप्रतिम सुख देता है| मरीजों का यही प्रगाढ़ विश्वास हमेशा उनके साथ रहा और वे सहज-सरल रूप से आगे बढ़ते रहे|चिकित्सक होकर भी वे बेहद सरल ढंग से जीवन जीतें हैं| कोई भी दंभ या अहंकार उनको छू भी नहीं पाया है| सेवा निवृति के क्षण में उनके सहकर्मियों की आँखें भर आई, सभी लोग भावुक व विह्वल हो गये| डॉ साहब के लिए सबके मन में असीम श्रद्धा का भाव उमड़ आया| आशा करती हूँ कि सेवा निवृति के बाद भी उनका जीवन सुखद और आनंदयक हो, वे सदा स्वस्थ, दीर्घायु व यशस्वी बने रहें यही मेरी शुभकामनायें हैं| 

भारती दास ✍️

Monday, 21 April 2025

दर्द दूसरे का महसूस कर

 मिट्टी का हर एक कण 
पानी का सारा जलकण 
वायु का लहर प्रत्येक 
अग्नि का चिंगारी समेत।
आकाश भी शामिल हुये
मिलकर वे प्रार्थना किये 
प्रभु से बोले वे सब साथ
हम पाँच तत्व हैं बेहद खास।
सविता देव के जैसे हम में 
भर दें तेज वैसे ही सब में 
प्रकाशमय और ऐश्वर्यमय
भास्कर सा तेजस्वमय।
ईश का स्वर दिया सुनाई 
माँगने में है नहीं भलाई
सूर्य अपने तन को जलाते 
प्राणी मात्र की सेवा करते।
तेरे पास है जो उत्सर्ग कर
कुछ देने का साहस तो कर
दर्द दूसरे का महसूस कर 
फिर रवि सा हो जा प्रखर।

भारती दास ✍️ 



Wednesday, 16 April 2025

सच्चे धर्म को जो अपनाता


सर्वनाश करना बर्बरता

धर्म कभी नहीं ये सिखलाता

एक धर्म दूसरे धर्मों का

बाधक भी कभी नहीं बनता।

निर्दोषों का रक्त बहाना 

निर्बल पर बल-तंत्र दिखाना

उन्मादी सा उत्पात मचाना 

घात-आघात दुर्बल को देना।

दीनों की आँखें जब रोती है 

कुपित हो रातें ठहर जाती है 

व्याकुल सृष्टि कांप जाती है 

दृष्टि दुखद बन जाग जाती है।

धर्म कल्याणमय चाह सिखाता 

भक्ति की निर्मल राह दिखाता 

प्रेम का आदर्श निभाता 

कोमल भाव का दर्श कराता।

धीरज-धैर्य धर्म से आता

पाप-पुण्य भी कर्म से पाता

रोष-दोष सबकुछ मिट जाता

सच्चे धर्म को जो अपनाता।


भारती दास ✍️


Saturday, 22 March 2025

सद्भावों की प्रेरणा देता


कवि प्रेम की कल्पना करता

सर्वदा शुभ कामना करता 

कर्तव्यों की अवधारणा करता 

सद्भावों की प्रेरणा देता।

देश की गौरव गान सुनाता 

मातृभूमि का मान बढ़ाता 

नारायण की महिमा गाता

विद्या कौशल ज्ञान सिखाता।

कहते कवि हरदम यही  

दुर्बल दशा ना हो कभी 

आश और विश्वास की

जलता रहे दीपक यूँही।

विषपूर्ण ईर्ष्या हो नहीं 

सद्गुण भरे मन हो सभी 

जीत श्रम का हो सही 

हरपल हँसे नभ और मही।

भारती दास ✍️