Saturday, 1 November 2025

हे दीनबंधु नरायणम्


सरोज नयनम् शेष शयनम्

घनाभ तन हे जनार्दन 

कर शंख चक्र सुशोभितम्

हे दीनबंधु नारायणम।

जय पद्मनाभम् लक्ष्मीकांतम्

श्री हरि जय विश्वेम्भरम्

हे सत्यरूपम् शान्ताकारम्

गरूड़ासनम् जगदीश्वरम्।

जय चतुर्भुजाय सुधाप्रदाय

 हे वृंदाप्रियम् परमेश्वरम्

हे महाबलाय सुलोचनाय

जय प्राणदाय पुरातनम् ।

जय वामनाय त्रिपदाय

जय सर्वनाथम् मंगलायम्

हे गगन सदृश्यम् विराट पुरुषम्

श्री विभु जय सनातनम्।

हे अनंत रुपम् हे सुरेशम्

अरुणाधरम्  हे मनोहरम्

असुरमर्दनम्  जगत वंदनम्

नमामि सिन्धु सुता वरम् ।

भारती दास ✍️ 



Thursday, 30 October 2025

अध्यात्म से ही कर्म-जगत है

 

ऊषा अर्चन-संध्या वंदन

प्रतिदिन का है धर्म-आचरण 

ईश्वर की पूजा और आराधना 

आशपूर्ण आस्था की भावना 

आस्तिक करता है विश्वास 

धर्म-कर्म और स्वर्ग की खास।

लेकिन नास्तिक कहता है 

लोग समय को नष्ट करता है 

परलोक का कोई सुधार नहीं है 

स्वर्ग-नर्क का आधार नहीं है 

किसने देखा है मृत्यु के बाद 

लय-गति होता प्राण का वास

यह है सिर्फ संभावना मात्र 

नहीं पता है स्वर्ग की बात।

ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक 

नहीं किया है अभी प्रमाणित 

मिथ्या है या फिर अनिश्चित 

पूजा का नियम बनाता दैनिक 

पाठ सिखाता है यह नैतिक

अनुशासन से बाँधा है आस्तिक।

अध्यात्म से ही कर्म-जगत है 

भक्ति से ही भक्त सहज है

छल-प्रपंच ना करे कपट

ईश्वर की शक्ति रहे सतत्

यह केवल एक भ्रांति है 

मौत सभी को आती है।

भारती दास ✍️ 

Monday, 20 October 2025

हर्ष-खुशी हो गम या विषाद

हर्ष-खुशी हो गम या विषाद 

दीपक हरता है तम अवसाद

मौन निशा का गहन अँधेरा

जैसे निबल हो विकल मन हारा

धरणी करती है सम अनुराग 

दीपक हरता है तम अवसाद....

काली रजनी विचलित करती 

प्राणी सबको विकलित करती

दीपों की लड़ी करती जयनाद 

दीपक हरता है तम अवसाद....

कहीं झोंपड़ी कहीं अटारी

रोशन हो गई धरती सारी

गली-गली में खुशी है आज 

दीपक हरता है तम अवसाद....

भारती दास ✍️ 

Thursday, 16 October 2025

सीख नई समझाती नदियाँ

 

बड़े-बड़े पेड़ों का मूल

प्रवाह में अपनी बहाती नदियाँ

किन्तु बेंत का पतला वृक्ष 

नहीं बहा ले जाती नदियाँ।

कमजोर समझकर करती उपेक्षा 

या उपकार कर देती नदियाँ

कोई खास रहस्य है गहरा

सीख नई समझाती नदियाँ।

प्रतिकूल बर्ताव के कारण 

तरू बड़े बह जाते हैं 

बेंत नदी के वेग भाँपकर

अपना शीश झुकाते हैं।

समय के साथ जो बुद्धि दिखाता 

उसका विनाश नहीं होता है 

सदा अकड़कर रहने वाला 

वक्त की मार को खाता है।

विद्वान सदैव विनम्र ही रहते 

उपकार सहज कर देते हैं 

त्याग अति ना भोग अति हो

सत्य की मार्ग चुन लेते हैं।

युक्ति संगत बातें कहकर 

अर्थपूर्ण मुस्काती नदियाँ

सरिताओं के स्वामी सागर

मुग्ध हुए सुन गूढ़ नीतियाँ।

भारती दास ✍️

Thursday, 25 September 2025

मोह छोड़कर जाना होगा


नील गगन में घूम रही थी

तारों का मुख चूम रही थी 

फिर बादल ने आकर बोला 

नभ-प्राँगन में रहना होगा 

मोह छोड़ कर जाना होगा।

मैंने तो देखा था सपना 

अश्रु भरे थे सबके नयना

छूकर देखा अंगों को अपना

अभी साँस को बहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

पूरे हुये अरमान बहुतेरे 

कुछ इच्छाएँ  रहे अधूरे

है अच्छे कर्मों का अर्जन

दुःख नहीं कुछ ,कहना होगा 

मोह छोड़कर जाना होगा।

स्नेहाशीष मैं दे जाऊँगी

प्रभु चरणों में जा बैठूँगी

और किसी से क्या कहूँगी

व्यथा असीम है सहना होगा

मोह छोड़कर जाना होगा।

भारती दास ✍️

मेरी पुण्यमयी सासू माँ गोलोक धाम

चली गई

Monday, 22 September 2025

हे जगदंब नमन स्वीकारो


अरुणिम प्रभात की वेला आई

घट सुमंगल सबने सजाई

द्वार-द्वार अंबे माँ आई 

सुख-सौभाग्य सौगातें लाई।

नवल वसन तन शोभित आई

केहरि वाहन हर्षित आई 

मुख अभिराम सुखद मन आई

अरविंद नयन मुस्काती आई।

शिथिल मनुज को जगाती आई

आश का दीप जलाती आई

जगत का कष्ट मिटाती आई

चित्त अनुराग बरसाती आई।

हे जगदंब नमन स्वीकारो

दुर्गम पथ पर दुर्गा निहारो

हे शैल सुता भक्तों को तारो

मुश्किल पल से सदा उबारो।

भारती दास ✍️ 




Saturday, 13 September 2025

निराकार पूँज में हो साकार


किये समाज में नींव की रचना

सीख अनमोल सी देकर अपना 

निराकार पूँज में हो साकार

जो चले गए हैं बादल के पार।

हास अधर पर आस नयन में 

पाठ सिखाये थे जीवन में 

क्षमा,दया, करूणा-व्यवहार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

हो पाप,शाप तृष्णा से मुक्त 

शांत सुखद मुख होकर तृप्त 

छोड़कर सारा व्यथा-भार

जो चले गए हैं बादल के पार।

स्मृति में रहता पदचिन्ह 

अश्रुधार बहता निर्विघ्न 

करते हैं नमन, कहते आभार 

जो चले गए हैं बादल के पार।

भारती दास ✍️

बाबूजी के बारहवीं पुण्य-तिथि पर सादर श्रद्धाँजलि

Saturday, 30 August 2025

अपनी इच्छा पर निर्भर है

 

 अपनी इच्छा पर निर्भर है

जीवन में उत्थान-पतन 

शील स्वभाव उन्नत विचार से 

मानव पाता है नेह सुमन।

जिस तरूवर ने पाला पोसा 

प्राणों में रक्त संचार किया 

उसी वृद्ध पावन तरुवर को

क्रूरता से संहार किया।

तिरस्कृत है वह कटु भाषा 

जिससे टूटता हृदय की तार 

परवाह नहीं जिसे अपनों की

कष्ट वेदना देता है अपार।

उस घर का दुर्भाग्य सदा है 

होता जहाँ निष्ठुर व्यवहार 

पतित कर्म को करने वाले 

हमेशा पाता है दुत्कार।

अशुभ आचरण विकृत विचार 

नज़रों में सबके गिरा देता है

मन कुंठित होता ग्लानि से 

अपनों को जब खो देता हैं।

भारती दास ✍️

Thursday, 14 August 2025

भारत माँ के चरणों में

 

लंबे संघर्ष और असंख्य बलिदान

अनगिनत यातना और घोर अपमान 

मन पीड़ित और मूर्छित था प्राण 

था वीभत्स रूप में देश की आन ।

सुंदर सपना आजाद हुआ 

कर्म कुसुम भी आबाद हुआ 

उमंग-तरंग बल तंत्र हुआ 

देश ये प्यारा  स्वतंत्र हुआ ।

स्वर्ण प्रभात का धूप मिला 

अरमानों को नव रुप मिला 

साज़ आवाज अंदाज मिला 

कंधों से कंधों का साथ मिला ।

भारत माँ के चरणों में 

हरदम शीश झुकाएँगे

आजादी है सबको प्यारी 

उत्सव खूब मनाएँगे ।

भारती दास ✍️

Thursday, 7 August 2025

निर्मल पावन चंचल ये मन


है महीनों से उत्साहित हरदम

निर्मल-पावन चंचल ये मन

बरसों बाद ये मौका आया 

राखी का पर्व अनोखा आया 

आनंद मगन है उर-अंतर्मन 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

शैशव जैसा है उल्लास 

स्नेही भाई भी है खास 

सुख हो दुःख या हो कोई क्षण 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

भगवान रुद्र हरे सब व्यथा 

हो प्राप्त धन-यश सर्वदा 

सत्य-सरल सुखमय हो जीवन 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

प्रेम-सौहार्द का उन्मेष रहे

आशीष सदा ही विशेष रहे

हो सुंदर मंगलमय हर-पल 

है महीनों से उत्साहित हरदम....।

भारती दास ✍️