तुलसी के रामायण की
महिमा है कुछ खास
अनुकरणीय ये ग्रंथ है
विद्वजन कहते उल्लास.
रघुकुल भूषण रामजी
थे आज्ञाकारी पुत्र
तरुण तपस्वी बने सदा
पूर्ण किये कर्म सूत्र.
सर्वप्रथम वे मित्र जो
नहीं रखते हैं द्वेष
आपत्ति के काल में
हरते मन के क्लेश.
द्वितीय माता जानकी
थी पत्नी आदर्श
श्रीराम जी के साथ में
वन में सही थी कर्ष.
तृतीय सौमित्र पुत्र वे
तत्क्षण हुए अधीर
सेवक बनकर चल पड़े
संग सिया-रघुवीर.
चतुर्थ कैकेयी सुत महान
छोड़ कर सिंहासन राज
चरण पादुका अराध्य के
किये मानकर काज.
पंचम अंजनी लाल बिना
विकल हुए भगवान
द्रोणागिरि ऊठा लाये
बलशाली हनुमान.
षष्ठम गुरु के चरण में
रख देते जो शीश
समस्त वैभव संपदा
उन्हें देते हैं जगदीश.
सप्तम भक्त की आस्था
शबरी मां का स्नेह
जूठे बेर खाकर प्रभु
हर्षाये अति नेह.
संबंधों को प्रेरणा
देता है ये ग्रंथ
है जीवन की संजीवनी
हर दोहा हर छंद.
भारती दास ✍️
रामायण की महिमा बखान करती सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteसही कहा है ... तुलसी कृत रामायण आम जन जन तक है ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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