जीवन में भरती नव-नव मोद
खेलती-कूदती करती विनोद
जो मनुहार में जीती है , वो
बेटी है
जो रुद्ध कंठ से रोती है
झकझोर ह्रदय को करती है
जो पलकों पर सावन रखती है ,
वो बेटी है
पल-पल विकलित क्षण-क्षण
विचलित
शिशु सौरभ सा स्मित पुलकित
जो शशि छूने को मचलती है ,
वो बेटी है
कोमल-कोमल अंग-राग
अरुण नयन में भरे अनुराग
जो दीपशिखा सी जलती है , वो
बेटी है
सुख में दुःख में अंधकार
में
वाणी से शोभित संस्कार में
जो प्रेम की धारा बहाती है
, वो बेटी है