भारतीय संस्कृति का क्या कहना,यूँ ही नहीं है गौरवमय गरिमा
रामायण की एक शबरी थी,अशिक्षित- अछूत पड़ी थी
मतंगऋषि ने अछूत कहा था ,उसके जीवन को व्यर्थ कहा था
ये जीवन फिर होगा सुन्दर,कर्म कौशल जो होगा बेहतर
यही सोच सेवा अपनाया ,राम नाम में खुद को समाया
जाति-धर्म से ऊपर उठकर ,शबरी चली अनमोल सा पथ पर
उसका जीवन उसका संयम ,सेवा-प्रेम ही उसका शिक्षण
नवल प्रेरणा नया उमंग उसने लिया अद्भुत संकल्प
शूल भरे पथ को बुहारती ,ऋषि के राहों को संवारती
समाज से दूर जंगल में रहती ,राम-नाम के मंत्र को जपती
संस्कृत का श्लोक नहीं आता,कर्मकांड का पूजा नहीं भाता
निश्छल प्रेम की वो मूर्ति थी ,शिक्षण भरी उसकी भक्ति थी
उसकी निष्ठा प्रखर हो गयी ,अछूत सी शबरी अमर हो गयी
राम को आखिर आना ही पड़ा,जूठे बेर खाना ही पड़ा
प्रेम का नहीं होता स्वरुप ,अछूत हो या कोई सुर-भूप
भारती दास