Saturday, 22 July 2023

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

 

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी

रक्त बहाती जाती बेचारी

तृषित कंठ में विष का प्याला

प्राण गंवाती जाती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

आंसू से भीगे आंचल में

विप्लव भर लेती हरपल में

शापित जैसा जीवन लेकर

अपराधी सी जीती नारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

कब हंसती कब रो लेती है

क्या पाती क्या खो देती है

बस आहुति देती रहती

निर्मल पावन मन की हारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

व्यथा भार संताप को ढोती

निशि-वासर पीड़ा में होती

घायल तन-मन करता रहता

अधम नीच और दुराचारी

फिर-फिर घिर-घिर जाती नारी....

भारती दास ✍️



6 comments:

  1. आपकी अभिव्यक्ति यथार्थ को परिलक्षित करती है। मुझे बस इतनी-सी बात और जोड़नी है कि नारियां यदि अपनी सभी बहनों की पीड़ा को एक-सी समझें तथा अत्याचारी पुरुषों का साथ न दें तो वे समग्र नारी जाति के हित में खड़ी दिखाई देंगी। पीड़िताओं में किसी भी आधार पर भेद न किया जाए तो ही पीड़ा के निराकरण का मार्ग-प्रशस्त होगा।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  2. नारी की पीड़ा को ह्रदय विदारक शब्दों में आपने प्रस्तुत किया है, अब उसे हर हाल में अपनी शक्ति को पहचान कर अन्याय का सामना करना होगा, किंतु इसमें समाज के हर वर्ग का सहयोग अत्यंत आवश्यक है

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  3. मन में उठते पीड़ा के भाव ... मौन हूँ क्योंकि ये पीड़ा पुरुष प्रधान समाज देता है हर बार नारी को ... जाने कब चिंतन करेगा ये सनाज ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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