Thursday, 12 January 2023

पहाड़ का दर्द

 पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़

इस हाल का कौन है जिम्मेदार

सूनी गलियां सूना आंगन

है दहशत में सबका आनन

भींगे नयनो में आह भरा है 

पीड़ा करूणा अथाह भरा है 

उत्कर्ष का अवसर गौण हुआ 

तप-ज्ञान प्रखर भी मौन हुआ 

ये श्रृंग जब तक था सुखद

परमार्थ की सेवा में था रत

अब सजल कंठ से रोते हैं

विविध व्यथा में जीते हैं

क्षोभ से शैल दरक रहे हैं 

मनुज प्राण भी सिसक रहे हैं 

स्वार्थी बनकर मानव रहा है

प्रकृति कोष विपदा ही सहा है

निदान सही हो समाधान

रहे सुरक्षित गिरि महान.

भारती दास ✍️


19 comments:

  1. वाक़ई पहाड़ सा दुःख आकर खड़ा हो गया है पहाड़ वासियों पर, लेकिन हर समस्या का हल भी है, समय के साथ दुःख का समाधान मिलेगा

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनीता जी

      Delete
  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
    https://experienceofindianlife.blogspot.com/2023/01/blog-post_13.html?m=1

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अभिलाषा जी

      Delete
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (15-1-23} को "भारत का हर पर्व अनोखा"(चर्चा अंक 4635) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी

      Delete
  4. 'उत्कर्ष का अवसर गौण हुआ, तप-ज्ञान प्रखर भी मौन हुआ' -इस काव्यांश में ही नहीं, समूची रचना में छिपी पीड़ा का अनुमान कविता की पहली पंक्ति 'पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़' ने ही करा दिया था। बहुत सुन्दर व मर्मस्पर्शी रचना है यह भारती जी!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

      Delete
  5. बहुत दर्द भरा किन्तु यथार्थवादी चित्रण !
    31 साल अल्मोड़ा में रह कर मैंने पहाड़ को सिसकते हुए, सुलगते हुए और पर्वतवासियों को बहकते हुए, पलायन करते हुए देखा है.
    लेकिन पहाड़ का सबसे बड़ा दर्द यह है कि इसके रक्षक होने का दायित्व इसके भक्षकों को दे दिया गया है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

      Delete
  6. संवेदना का सरगम!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

      Delete
  7. हृदय स्पर्शी सामायिक उत्कर्ष।
    सार्थक सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

      Delete
  8. मर्मस्पर्शी रचना💜❤

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी

      Delete
  9. हिमशिखरों की दर्दभरी दास्तान कहती और मर्म को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  10. बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी

    ReplyDelete