पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़
इस हाल का कौन है जिम्मेदार
सूनी गलियां सूना आंगन
है दहशत में सबका आनन
भींगे नयनो में आह भरा है
पीड़ा करूणा अथाह भरा है
उत्कर्ष का अवसर गौण हुआ
तप-ज्ञान प्रखर भी मौन हुआ
ये श्रृंग जब तक था सुखद
परमार्थ की सेवा में था रत
अब सजल कंठ से रोते हैं
विविध व्यथा में जीते हैं
क्षोभ से शैल दरक रहे हैं
मनुज प्राण भी सिसक रहे हैं
स्वार्थी बनकर मानव रहा है
प्रकृति कोष विपदा ही सहा है
निदान सही हो समाधान
रहे सुरक्षित गिरि महान.
भारती दास ✍️
वाक़ई पहाड़ सा दुःख आकर खड़ा हो गया है पहाड़ वासियों पर, लेकिन हर समस्या का हल भी है, समय के साथ दुःख का समाधान मिलेगा
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
ReplyDeletehttps://experienceofindianlife.blogspot.com/2023/01/blog-post_13.html?m=1
धन्यवाद अभिलाषा जी
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (15-1-23} को "भारत का हर पर्व अनोखा"(चर्चा अंक 4635) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी
Delete'उत्कर्ष का अवसर गौण हुआ, तप-ज्ञान प्रखर भी मौन हुआ' -इस काव्यांश में ही नहीं, समूची रचना में छिपी पीड़ा का अनुमान कविता की पहली पंक्ति 'पहाड़ का दर्द या दुख का पहाड़' ने ही करा दिया था। बहुत सुन्दर व मर्मस्पर्शी रचना है यह भारती जी!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबहुत दर्द भरा किन्तु यथार्थवादी चित्रण !
ReplyDelete31 साल अल्मोड़ा में रह कर मैंने पहाड़ को सिसकते हुए, सुलगते हुए और पर्वतवासियों को बहकते हुए, पलायन करते हुए देखा है.
लेकिन पहाड़ का सबसे बड़ा दर्द यह है कि इसके रक्षक होने का दायित्व इसके भक्षकों को दे दिया गया है.
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteसंवेदना का सरगम!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteहृदय स्पर्शी सामायिक उत्कर्ष।
ReplyDeleteसार्थक सृजन।
बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
Deleteमर्मस्पर्शी रचना💜❤
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी
Deleteहिमशिखरों की दर्दभरी दास्तान कहती और मर्म को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी
ReplyDeleteमार्मिक
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