Friday, 30 May 2025

जीवन साँसें बहती है

 जीवन साँसें बहती है

स्वर्ण प्रात में, तिमिर गात में

जब मूक सी धड़कन चलती है

तब जीवन साँसे बहती है|

नवल कुन्द में, लहर सिंधु में

जब चाह मुखर हो जाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

घन गगन में, धवल जलकण में

जब रिमझिम बूंदें गाती है

तब जीवन साँसें बहती है|

मधु-पराग में, भ्रमर-राग में

जब चंचल कलियाँ हँसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

रवि के ताप में, पग के थाप में

जब गति शिथिल हो जाती है

तब जीवन साँसे बहती है|

प्रिय की आस में, हिय की प्यास में

नयन विकल हो बरसती है

तब जीवन साँसें बहती है|

भारती दास ✍️

Monday, 12 May 2025

जीवन प्रकृति के साथ है

 

भगवान बुद्ध ने साधा योग

छोड़कर राज पाट और भोग

शरीर को उन्होंने गला ही डाले

मन को अपने तपा ही डाले

हड्डी ही हड्डी रह गये थे

पेट पीठ में मिल गये थे

कमजोर वो इतने हो गये थे 

अपने आप न उठ सकते थे

ध्यान-मग्न में वे बैठे थे

दृग दुर्बल हो बंद हुये थे,

चौंक गई थी देवी सुजाता

प्रकट हुये हैं स्वयं विधाता

वृक्ष देव की पूजा करती थी

पूनम को खीर चढ़ाती थी

स्नेह नीर से पग को धोई

श्रद्धा से भरकर खीर खिलाई

बुद्ध देव को शक्ति आई

भक्ति सुजाता की मन भाई

फिर उनको ये ज्ञात हुआ

अबतक जो आत्म घात हुआ

नेत्रों में बिजली कौंध गई

बरसों-बाद साधना फलित हुई,

सब व्यर्थ है सब नाहक है

तनाव चिंता दुख पावक है

जीवन प्रकृति के साथ है

अहिंसा सुखद एहसास है

मन के देव हैं सहनशीलता

लक्ष्य तक जाता है गतिशीलता

सार्थक सोच से सुख पाता है

पथ मिथ्या अवरुद्ध करता है।

भारती दास ✍️ 

 

    

Sunday, 4 May 2025

विनाश का दीप जला बैठा है

 


 

धरती माता बिलख रही है

क्रूर आतंक के डंकों से

कब तक यूँ बलिदान करेंगे

पुत्र को अपनी अंकों से|

विनाश का दीप जला बैठा है

पाप के सौदागारों ने

निर्दोषों को मारता रहता

पाषाण हृदय खूंखारों ने|

द्वेष भाव से भरी आत्मा

शोणित ही तो बहाती है

दुर्भावों के पोषण से ही

प्रपंच अनेकों रचती है|

शैल शिखर स्तब्ध चकित है

देखकर उन हत्यारों को

रक्त-बीज सा रक्त-पिपासु

रिपु-घाती गुनाहगारों को|

धरा वंदिनी माँ के सम्मुख

मौत सुतों की होती है

दुर्भाग्यों को नियति मानकर

विवश सी आँसू बहाती है|

भारती दास ✍️