कुछ अनुभूति अंकुरित हुई है
नव स्फूर्ति विस्तरित हुई है
हे शुभ प्रभात के बाल-श्रेष्ठ
महसूस करो क्या विदित हुई है.
शुभ कर्म करो ना शर्म करो
संकल्प करो ना विकल्प धरो
हे लोकहित कल्याण-श्रेष्ठ
कर्णधार बनो ना प्रहार करो.
बहुत सो चुके बहुत खो चुके
अब देर करो ना बहुत रो चुके
हे चेतना के ज्ञान-श्रेष्ठ
फिर निजता में क्यों सिमट चुके.
यों डरते रुकते ठहरों ना
आग बढ़कर अब सोचो ना
हे नव जीवन के प्राण-श्रेष्ठ
बनो समर्थ यूँ ही भटको ना.
अपने अन्दर चिंगारी भर लो
जोश उमंग बस सारी भर लो
हे शक्तिवान बलवान-श्रेष्ठ
प्रचंड वेग हितकारी भर लो.
प्रभु की शक्ति साथ खड़ी है
आशीष की बारिश बरस रही है
हे भारत के संतान-श्रेष्ठ
समय की धारा बीत रही है.
भारती दास ✍️
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०८-२०२३) को 'घास-फूस की झोंपड़ी'(चर्चा अंक-४६७७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रेरक सृजन
शुभ कर्म करो ना शर्म करो
संकल्प करो ना विकल्प धरो
हे लोकहित कल्याण-श्रेष्ठ
कर्णधार बनो ना प्रहार करो.
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
ReplyDeleteसुंदर भाव
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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