Saturday, 23 September 2023

महान-विदुषी नारी कैकेयी

 

नृप दशरथ की दूसरी रानी
नाम थी कैकेयी बड़ी सयानी
थी विदुषी प्रतिभा-सम्पन्न
परम सुन्दरी वीरांगना अनुपम
सती-साध्वी चरित्र था उनका
पति-प्रेम में अटूट सा निष्ठा
राज-कार्य में करती सहयोग
नहीं रखती कुछ मन में क्षोभ
शम्बरासुर के साथ युद्ध में
दशरथ जूझ रहे थे क्रुद्ध में
तब कैकेयी ने दिखायी हिम्मत
सारथी बनकर बचाई इज्जत
राजा दशरथ थे मर्मज्ञ
एहसान मानकर हुए कृतज्ञ
हे प्रिय तुम कुछ ना सोचो
हमसे कोई दो वर मांगों
मेरा है वरदान धरोहर
मांग लूंगी कभी समय पर
यह कहकर कैकेयी मुस्काई
अपनी जीत पर वह हरषाई
अंतर कभी नहीं करती थी
राम की जननी माता सी थी
एक दूजे में था नेह समान
कैकेयी लुटाती रहती जान
दुखद आहट से थी अनजान
समय चला था कुचक्र महान
परम्परा यही चलती थी
ज्येष्ठ पुत्र को ही मिलती थी
राजा की उत्तराधिकारी
राम ही होंगे थी तैयारी
कैकेयी ख़ुशी से झूम उठी थी
पर अनहोनी कुछ और वदी थी
मंथरा नाम की थी दासी खास
जिसने लगा दी द्वेष की आग
दिल-दिमाग से तिक्त हुई थी
करुणा-ममता से रिक्त हुई थी
राजा से मांगी दो वरदान
"भरत-राज्य‘और’वन को राम"
चौदह वर्ष वनवास मिला
कैकेयी को संतोष मिला
राम-राम बस राम कहे
दशरथ जी निज प्राण तजे
इसी घटना ने मोड़ दिया
कलंक से नाता जोड़ दिया
कुमति मति की थी लाचारी
अपने पति की बनी हत्यारी
कुपथ गामिनी बनी अभागी
बनी कलंकिनी जो थी त्यागी
विधि की मोहरा वो सटीक थी
लेकिन प्रेम की वो प्रतीक थी
बन गयी वो घृणा की पात्र
बनी पापिनी मूढ़ कुपात्र
’लेकिन सत्य यही है सबसे
विदुषी महिला थी वो मन से
क्यों फिर ऐसा काम कर गयी
लोक-लाज से वो गड़ गयी
ऋषि-मुनि को सर्व विदित था
विधि की लीला स्व-रचित था
कुल के हित को चाहने वाली
राम को विजय बनाने वाली
भविष्य सुनहरा कर गयी वो
राम की प्रेरणा बन गयी वो
दूर दृष्टि कहते है इसको
जिसने कलंकित की थी खुद को
स्नेह की डोर से बांधता कौन
उत्तर से दक्षिण जाता कौन
जन-जन के मन में समाता कौन
अन्याय रावण का मिटाता कौन
जन ने मन से वहिष्कार किया
उनको सदा ही तिरस्कार किया
पेशेवर नहीं थी वो हत्यारी
नही थी अपराधी व्याभिचारी
पुत्र ने भी उन्हें बैर ही जाना
अशुभ कहा उन्हें गैर ही माना
इससे बड़ा क्या होगा दण्ड
माँ की ममता हो गयी खंड
कैकेयी की अपराध बोध
ग्लानि-नीर से बहा था क्षोभ
पछतायी वो मन से भर-कर
प्रायश्चित की उर से रोकर
पीड़ित-व्यथित-संकुचित हुई थी
आत्म-पीड़ा से दुखित हुई थी
कैकेयी की ये कथा कहती है
निश्चय शुभ सन्देश देती है
कभी किसी की बात में आकर
ना भुलाये चरित्र ये सुन्दर
खुद को पापी-पीड़ित बनाकर
क्यूँ जीना अपमानित होकर
राम ने श्रद्धा-पात्र बनाया
निर्मल और निष्पाप बनाया.
घृणित नहीं वन्दित हुई वो
निन्दित नहीं पूजित हुई वो
भरत-जननी श्रेष्ठ थी नारी
महान विदुषी दशरथ प्यारी
उन्होंने की जग पे एहसान
देकर शुभ-सुन्दर परिणाम.

भारती दास ✍️

Sunday, 17 September 2023

हे गौरी सुत हे गजबदन

 हे गौरी-सुत हे गजबदन  

एक निवेदन करते हम

झुककर भी मैं पहुँच ना पाती

जहाँ तुम्हारे दोनों चरण 

हे गौरी सुत हे गज बदन .......

मैंने सबसे यही सुना है 

दुखियों में करते विचरण 

खोज खोज के मैं हारी हूँ

कब दोगे दर्शन भगवन

हे गौरी सुत हे गज बदन..........

मेरे जीवन में क्यों होती 

क्षोभ विकलता की उन्मेष 

तेरा अपनापन पाने को

नाथ मैं सह लेती हर क्लेश 

हे गौरी सुत हे गज बदन ..........

अब देर न कर हे लम्बोदर 

अपनी करुणा बरसा मुझपर

मेरे चित-आंगन में रहना 

नमन करूँ मैं जीवन भर      

हे गौरी सुत हे गज बदन.........

Happy Ganesh chaturthi

भारती दास ✍️

Wednesday, 6 September 2023

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

 हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे

हे चक्रधारी बांके बिहारी

पतित पावन गोविन्द प्यारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

वंशी बजैया नाग नथैया

दीन दुखी के सखा सहारे

हे कंसारी मदन मुरारी

गोवर्धन धारी तुम्हें पुकारे

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

परम मनोहर अगम अगोचर

राधा वल्लभ दरश दिखा रे

ना हममें शक्ति ना भक्ति बल है

शरण में आए हैं हम तुम्हारे 

हे कृष्ण केशव मुकुन्द माधव

नंद यशोदा के सुत दुलारे....

भारती दास ✍️