जल गई दीपों की अवली
सज गई है द्वार और देहली
शक्ति का संचार कर गई
दीपमालिका मंगल कर गई
उर मधुर स्पर्श कर गई
निविड़ निशा में उमंग भर गई.
आभा धरा की दमक रही
सुख मोद से यूं चमक रही
हृदय-हृदय से पुलक रही
स्मित अधर पर खनक रही.
दिवस-श्रम का भार उठाये
दृग-दृग में अनुराग सजाये
दुर्गुण जलकर सद्गुण आयें
रमा-नारायण घर-घर आयें.
भारती दास ✍️
दीप-पर्व की अनंत शुभकामनाएं