देवमंदिर के प्रांगण जैसे
श्रद्धावत शीश नवाते हैं
जीवन-पाठ जहां पर पढ़ते
वो पाठशाला कहाते हैं.
हर दिन कुछ नया सिखाते
शिष्टाचार समझाते हैं
अनुशासन की सीख से सारे
सदाचार अपनाते हैं.
उज्जवल भविष्य जहां पर देते
अमूल्य ज्ञान सब पाते हैं
सद वाचन से पोषित करते
सरल सौम्य बनाते हैं.
पवित्र-पावन हरदम होता
गुरु शिष्य के नाते हैं
पथ सुभग आनंदित होता
ज्ञान लक्ष्य को पाते हैं.
भारती दास ✍️
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