Saturday, 11 March 2023

भ्रष्टाचार

 


अभी अचानक नहीं है निकला,              
मानव हृदय को जिसने कुचला,                
विविध रूपधर भर धरती में
अवलोक रहा है बारंबार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है
जन है जग है मोह कई है
कला नहीं है भाव विवेचन
दयनीय है जीवन के सार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
कौन सन्देशा बांटें घर-घर,
किसके भरोसे चले हम पथ पर
किसके जीवन का हो उपकार
नष्ट-भ्रष्ट है व्यक्ति संसार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
जोर-शोर से कभी चिल्लाकर,
कभी हवा में महल बनाकर,
फिर विलीन हो जाते सहसा,
घोष भरा विप्लव अपार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
निर्भयता थी जिनकी विभूति
पावनता अबोध थी जिनकी
जो शिवरूप सत्य था सुन्दर
बिखर गए जग के श्रृंगार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
आह्लाद कभी तो अश्रुविषाद
वेद विख्यात मिथ्या नहीं बात
कल को नहीं किसी की याद
जगत की कातर चीत्कार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
लूटकर परसुख सदा निरंतर
जीविका हरते मूढ़ सा मर्मर
मानव मन कुछ तो चिंतन कर
जीवन के सन्देश थे चार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
जीवन हो रहा उपेक्षित
लक्ष्य कर्म दृष्टि से वर्जित
प्रेरणाशक्ति क्यूँ है वंचित
कल को रच दो  नवसंसार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
गिन के हैं सब के दिनचार
फिर भी मची है हाहाकार
युग-युग के अमृत आदर्श
विम्बित करती है जीवन भार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
कर्मठ विनम्र मंगलपथ साधक
सत्य न्याय सदगुण आराधक
जन-जन बने अगर आविष्कारक
लोकहित का जो करे विस्तार
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार....
हे विधि फिर सुवासित कर दो
इस जग को अनुशासित कर दो
हे दयामय फिर लौटा दो
आनंद उमंग और शिष्टाचार
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार....
भारती दास ✍️

6 comments:

  1. भ्रष्टाचार का इलाज तो हर व्यक्ति के पास है यदि हर व्यक्ति लालच त्याग दे तो । बेहतरीन रचना ।

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. हे दयामय फिर लौटा दो
    आनंद उमंग और शिष्टाचार !
    परमात्मा का साम्राज्य इतना विशाल है कि लाखों बार सृष्टि बनी व बिगड़ी, उसमें ज़रा भी अंतर न पड़ा। कोई भी विकार उसकी कृपा के आगे तुच्छ है

    ReplyDelete
  4. अतिशय आभार

    ReplyDelete