न हों चैन न कभी आराम
नही लेते पढने से विराम
हर-पल रहता एक ही ध्यान
है परीक्षा उसी का नाम.
पढने के पीछे सब पड़ते
पढो –पढो कहते ही रहते
पढने की होती नही इच्छा
देनी पड़ती है परीक्षा.
सबको आगे ही है बढना
पर सबसे इतना हो कहना
क्या होती है ऐसी शिक्षा
देनी पड़ती है परीक्षा.
आश लगी रहती है माँ की
पढने का भी बोझ है काफी
शिक्षक भी करते हैं समीक्षा
देनी पड़ती है परीक्षा.
भारती दास ✍️
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबिलकुल देनी पड़ती है परीक्षा ... आक का सिस्टम तो यही है ....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteपरीक्षा तो जीवन के हर कदम पर होती है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
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