Saturday, 30 April 2022

अपना स्वेद बहाते हैं वो

 

दिन डूबा संध्या उतरी है 

पशुओं की कतार सजी है

खेतों और खलिहानों से

आने को तैयार खड़ी है.

बिखरी लट है कृषक बाला की

मलीन है उसका मुख मस्तक भी

कठिन परिश्रम करने पर भी 

दीन दशा गमगीन है उसकी.

स्वर्ण सज्जित भवन हो उन की 

चाह नहीं है ऐसी मन की

मिले पेट भर खाने को 

दर्द वेदना ना हो तन की.

दीनता का रूधिर पीकर

जीते हैं रातों को जगकर

भूमि का भी हृदय क्षोभ से

रह जाते है कंपित होकर.

धूपों में बरसातों में भी

तपते भींगते रहते हैं जो

वही गरीबी को अपनाकर

निष्ठुर पीड़ा सहते हैं वो.

विटप छांह के नीचे बैठे

गीले गात सुखाते हैं 

कामों में फिर हो तल्लीन

अपना स्वेद बहाते हैं.

भारती दास ✍️





Sunday, 24 April 2022

बंधन मोक्ष का बनता कारण

 मन ही शत्रु मन ही मित्र

मन ही चिंतन मन ही चरित्र

मन से ही है दशा-दिशा

मन से ही है कर्म समृद्ध.

मन ही शक्ति मन ही ताकत

मन ही साथी मन ही साहस

हरता विकार दुर्बलता मन

मन ही आनंद की देता चाहत.

सत्य-असत्य और क्रोध तबाही

पग-पग पर देता है गवाही

भावनाओं में है रोता हंसता

मन रहता गतिमान सदा ही.

मन ही दर्पण मन ही दर्शन

मन ही राग वैराग तपोवन

मन से ही संगीत सुहाना

समस्त कामना जीवन है मन.

जहां तहां करता मन विचरण 

प्रयत्न शील रहता है क्षण-क्षण

बंधन मोक्ष का बनता कारण

खुद ही मन करता अवलोकन.

भारती दास ✍️




Saturday, 9 April 2022

श्री राम राघव जय करे


हे जग आराधक भक्त साधक 

श्री राम-राघव जय करे

दीन पोषक क्षोभ शोषक

मोह नाशक भय हरे.

कमल लोचन भगत बोधन

शील संयम शुभ करे

आदर्श वाचन पतित पावन

दंभ रावण का हरे.

हे तप तितिक्षा शौर्य शिक्षा

रत परीक्षा में रहे

सफल साधना अटल कामना

शत वेदना थे सहे.

अभिराम मुख सुखधाम सुख

दानव दमन करते रहे

हनुमान के हर रोम में 

प्रभु राम जी बसते रहे.

हे विराट शोभा प्रभात आभा

साध यही मेरी नाथ हो

प्रति उर निवासी गुण शील राशि

अगाध नेह अनुराग हो.

हे अगम अगोचर परम मनोहर

विषाद नाश विकार हो

करुणा नयन पद में नमन

दिन-रात ही स्वीकार हो.

भारती दास ✍️





Saturday, 2 April 2022

नवरात्र महापर्व है

 

नवरात्र महापर्व है
शक्ति का संधान है
अभीष्ट सिद्धि प्राप्ति का
श्रेष्ठ अनुष्ठान है
तन तपाते रहे
मन साधते रहे
मधुर आचरण से
सदभाव साजते रहे
वसुंधरा लगती नई
पावनता उदार है
उपासना-आराधना की
भावना अपार है
कठोर श्रम सदा करें
विकृति ना विराट हो
सृजन उद्देश्य से जुड़ें
सौभाग्यपूर्ण राष्ट्र हो
विश्व का वातावरण
दुश्चक्र से अब मुक्त हो
मनुष्य की अब चेतना
संस्कृति से अनुरक्त हो
साधना शालीनता से
शक्ति का हो अवतरण
असुरता को दे चुनौती
दंभ असुर का हो दमन

भारती दास ✍️