Saturday, 25 February 2023

ऐ जाग जाग मन अज्ञानी

 


ऐ जाग जाग मन अज्ञानी

ये जग है माया की नगरी

अभिमान न कर खल-लोभ न कर

सब रह जायेगा यहीं पर धरी

ऐ जाग.......

लघु जीवन है ये सोच जरा

सब मिथ्या है ये सत्य बड़ा

मत विचलित हो उत्साह बढ़ा

कर कर्म सभी गर्वों से भरी

ऐ जाग.......

निज स्वप्न में डूबे मत रहना

ये मोह है रोग तू सच कहना

आनंद भरा जीवन पथ हो

गुजरे सुन्दर ये पल ये घड़ी

ऐ जाग.......

अब क्या मांगू फैलाकर हाथ

          विधि ने ही सजाया दिन और रात  

ये रात गुजर ही जायेगी 

      दिन निकलेगा किरणों से भरी

ऐ जाग.........

भारती दास ✍️


 

11 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  2. सकारात्मकता का संदेश देती सुंदर रचना।

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    1. धन्यवाद ज्योति जी

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  3. स्वयं को संबोधित करता संचेतना से युक्त सुंदर सृजन।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  5. धन्यवाद कुसुम जी

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  6. उत्साह जगाती सुंदर रचना।

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    1. धन्यवाद रुपा जी

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  7. अब क्या मांगू फैलाकर हाथ

    विधि ने ही सजाया दिन और रात

    ये रात गुजर ही जायेगी

    दिन निकलेगा किरणों से भरी

    ऐ जाग.........
    उम्दा अभिव्यक्ति ।

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  8. धन्यवाद सर

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