Tuesday, 30 May 2023

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

 मां गंगे की शीतल प्रवाह

अनेक उपासक अनेक है चाह

मर्म वेदना विकल कराह

दुःख चिंता विचलित सी आह

विस्तृत नीरव सलिल पावनी

पाप शाप हरती सनातनी 

प्रबोध दायिनी मोक्षदायिनी

देवनदी की जल सुहावनी 

बेटियों को बना सारथी 

राजनीति करते महारथी 

पदक विसर्जन में शान कहां है

वो गौरव अभिमान कहां है

देश के लिए मरनेवाले

अनीतियों से लड़नेवाले

कांटों पर ही चलते हैं

स्वयं ही राहें बनाते हैं

शील सादगी सज्जनता का

क्षमा दया करुणा ममता का

दीप जले निज अंतर्मन में

सुख पाये हरदम जीवन में

मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे

बोध सुभग हर उर में भर दे.

भारती दास ✍️


5 comments:

  1. वाह!! सुंदर सीख देती स्मासामयिक रचना!

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  2. धन्यवाद सर

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  3. धन्यवाद सर

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