हे सरस्वती जय मां भगवती
हंस वाहिनी कुमति तू हरती ....
प्रनत पालिनी जय जगदम्बे
पुस्तक धारिणी मूढ़ता हर दे
विद्या बुद्धि ज्ञान बढ़ाती
हंस वाहिनी कुमति तू हरती....
तेरी महिमा मैं क्या जानूं
जड़ बुद्धि हूं क्या पहचानू
वीणा में संगीत जो भरती
हंस वाहिनी कुमति तू हरती....
पद्म वासिनी मुझको वर दे
मेरे उर में अमृत भर दे
अज्ञानों में तू ही विचरती
हंस वाहिनी कुमति तू हरती....
भारती दास ✍️