आँसू की क्या दूं परिभाषा
इसकी नहीं है कोई भाषा
गम में, दुःख में, सुख में सब में
आहत होती ये जब तब में
याद आये जो बीते कल की
तो बस झट से आखें छलकी
किसी से जब कुछ कह नही पाए
आँसू मन की व्यथा बताये
समर्पण में छलक जाता
सुहाने पल में हँस देता
दुआ में भी ये रहता है
दया के साथ जीता है
नयन से जब भी बहता है
विधाता की ये श्रद्धा है
खुदगर्जी नहीं होती इसकी
सादगी हरदम इसमें होती
कुछ भी हो पर समझ यही है
हर पल सबके साथ वही है.
भारती दास ✍️
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteखूबसूरत आँसू
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर अश्रु परिभाषा वर्णन आदरणीय । बहुत शुभकामनायें ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteआसूँओं की बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण व्याख्या की है भारती जी।ये सुख और दुख दोनों को छलक कर दर्शा देते हैं।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी
Deleteअश्रुओं का सच्चा परिचय कराती सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
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