Thursday, 14 December 2023

गतिशीलता ही जीवन है

 

धरती घूमती रहती हर-पल

सूरज-चन्द्र ना रुकते इक पल

हल-चल में ही जड़ और चेतन

उद्देश्यपूर्ण ही उनका लक्षण.

सदैव कार्यरत धरा-गगन है

गतिशीलता ही जीवन है

गति विकास है गति लक्ष्य है

गति प्रवाह है गति तथ्य है.

धक-धक जो करता है धड़कन

मन-शरीर में होता कम्पन

दौड़ते जाते हर-दम आगे

एक-दूजे को देख कर भागे.

लक्ष्य भूलकर सदा भटकते

उचित-अनुचित का भेद ना करते

पूर्णता की प्यास में आकुल

तन और मन रहता है व्याकुल.

संबंधों का ताना-बाना

बुनता रहता है अनजाना

एक ही सत्य जो सदा अटल है

हर रिश्ते नातों में प्रबल है.

जहाँ मृत्यु है वही विराम है

फिर कुछ भी ना प्रवाहमान है

पूर्ण अनंत है ईश समर्पण

जैसे विलीन हो जल में जल-कण.  

भारती दास ✍️


14 comments:

  1. मृत्यु में भी विराम नहीं घटता, एक नया सृजन शुरू हो जाता है

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  2. पूर्ण अनंत है ईश समर्पण

    जैसे विलीन हो जल में जल-कण.

    बहुत ही सुंदर सृजन भारती जी,सादर

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    1. धन्यवाद कामिनी जी

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  3. वाह! सुन्दर सृजन!

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  4. बहुत सुंदर

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  5. जल में जल कण ... यही जीवन चक्र है और आपने बाखूबी लिखा इसे ...

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