धरती घूमती रहती हर-पल
सूरज-चन्द्र ना रुकते इक पल
हल-चल में ही जड़ और चेतन
उद्देश्यपूर्ण ही उनका लक्षण.
सदैव कार्यरत धरा-गगन है
गतिशीलता ही जीवन है
गति विकास है गति लक्ष्य है
गति प्रवाह है गति तथ्य है.
धक-धक जो करता है धड़कन
मन-शरीर में होता कम्पन
दौड़ते जाते हर-दम आगे
एक-दूजे को देख कर भागे.
लक्ष्य भूलकर सदा भटकते
उचित-अनुचित का भेद ना करते
पूर्णता की प्यास में आकुल
तन और मन रहता है व्याकुल.
संबंधों का ताना-बाना
बुनता रहता है अनजाना
एक ही सत्य जो सदा अटल है
हर रिश्ते नातों में प्रबल है.
जहाँ मृत्यु है वही विराम है
फिर कुछ भी ना प्रवाहमान है
पूर्ण अनंत है ईश समर्पण
जैसे विलीन हो जल में जल-कण.
भारती दास ✍️
मृत्यु में भी विराम नहीं घटता, एक नया सृजन शुरू हो जाता है
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteपूर्ण अनंत है ईश समर्पण
ReplyDeleteजैसे विलीन हो जल में जल-कण.
बहुत ही सुंदर सृजन भारती जी,सादर
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteवाह! सुन्दर सृजन!
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteजल में जल कण ... यही जीवन चक्र है और आपने बाखूबी लिखा इसे ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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