Tuesday, 30 August 2022

तुम ही मंगल मोद हो

 दृग बिछाये सारा जग ये

राह तेरी निहारते

थाल पूजा की सजाये

अपना तन-मन वारते.

कर मनोहर पुष्प माला

भक्त तुझको अराधते

दूर कर बाधा विधाता

मंत्र जप तप साधते.

तुम अगोचर हे महोदर

तुम ही मंगल मोद हो

ज्ञान पुण्य विवेक गौरव

तुम ही वैदिक बोध हो.

युगल पद में हे गजानन

सर झुका वर मांगते

हर विपत्ति दे सुबुद्धि

नाद स्वर से पुकारते.

भारती दास✍️


Thursday, 25 August 2022

जीवन का सुख सारा बचपन

 

जीवन का सुख सारा बचपन
प्यारा-न्यारा-दुलारा बचपन
नहीं था चिंता कोई फिकर-गम
अल्हड़पन में डूबा निडर मन
मां की ममता पिता का डर
जिद्दी बन हठ करता मगर
दादी मां की कहानी सुनकर
दौड़ते गलियों में सब दिनभर
खो-खो कबड्डी छुपम छुपाई
छपछप कर बारिश की नहाई
दिन वो सुनहरे भूल न पाई
पल छिन वैसा कभी न आई
मन मचलता बचपन जैसा
वक्त नहीं है पुराने जैसा
हंसी ठिठोली करते रहते
हर दिन उत्सव जैसे होते
काश वही क्षण होता बचपन का
दर्द न होता पीड़ा गम का.
भारती दास ✍️

Thursday, 18 August 2022

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर

 


हे वंशीधर यदुकुल सुन्दर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर...

लेकर अपने भाव की माला 

वंदन करती हूँ नन्द-लाला 

अहंकार सब लो मेरा हर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर... 

अब शेष रहे न दर्द भरे क्षण 

दूर करो सारे संकट गम 

पथ पर शूल बिछा है निरंतर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणा कर... 

श्रेष्ठ नहीं है साधना मेरी 

अनुकम्पा कब होगी तेरी 

चिंता मिटाओ नव बल दो भर

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर... 

मै निहाल हो जाऊं नटवर

देखूं तेरा छवि चिर सुन्दर

पूर्ण करो अभिलाषा गिरधर 

तुम ज्योतिर्मय तुम करुणाकर...

भारती दास✍️

Saturday, 13 August 2022

विश्व में बस एक है

 

जड़ता-कटुता-हिंसा ने
सभ्यता को पंक बना दिया
मिट्टी के पुतले बनकर
मानवता को मुरझा दिया.
संस्कृति पर जो हमारी
द्वेषवश हंसते रहे
राष्ट्र की कीर्ति संपदा को
पद तले मलते रहे.
तोड़ पाये जो प्रथा को
वो विद्वान मिटता जा रहा
मानव ही मानव का
व्यवधान बनता जा रहा.
मधुरता का बोध ही
जाने कहाँ पर खो गया
ऐसा प्रतीत होता है
जन यांत्रिक सा हो गया.
छूट कर पीछे गया है
भावनाओं का प्यारा देश
अब सिर्फ केवल बचा है
कोलाहल और बैर-द्वेष.
आसूओं में दर्द की
बहती रही तश्वीर है
इस देश की हे विधाता
कैसी ये तक़दीर है.
निर्दयता के पावस घन पर
कम्पित मन रोता बेजार
क्रूर वक्त की पृष्ठ पर
है क्लेश-गम अंकित हजार.
हर दुख-विषाद भूलकर
मगन प्रसन्न सब हो रहा
अमृत भरा सुखद ये क्षण
तृप्ति प्रदान कर रहा.
सजा तिरंगा हर घर प्यारा
है रोम-रोम उल्लास भरा
भूलोक का गौरव मनोहर
बन आया है खास बड़ा.
असीम अखंड आत्मभाव
जिस देश में अनंत है
वही ऋषि सा भूमि अपना
विश्व में बस एक है. 
भारती दास ✍️

Saturday, 6 August 2022

दोस्त वही जो ढाल बने

 उर से उर की तार मिले

दुख-सुख में सौ बार मिले 

दोस्त वही जो ढाल बने

दुश्मन के लिए तलवार बने.

ना धर्म लड़े ना कर्म लड़े

दिन-रात हो जिससे मन ये जुड़े

हो पावस ग्रीष्म हेमंत ऋतु

लेकर हाथ हो साथ खड़े.

जब चित्त हो विकल अधीर बड़े

जो कहे कि हम हैं पास तेरे

दशा कोई हो इस जीवन का

संग में हर अवसाद हरे.

भारती दास ✍️