दृग बिछाये सारा जग ये
राह तेरी निहारते
थाल पूजा की सजाये
अपना तन-मन वारते.
कर मनोहर पुष्प माला
भक्त तुझको अराधते
दूर कर बाधा विधाता
मंत्र जप तप साधते.
तुम अगोचर हे महोदर
तुम ही मंगल मोद हो
ज्ञान पुण्य विवेक गौरव
तुम ही वैदिक बोध हो.
युगल पद में हे गजानन
सर झुका वर मांगते
हर विपत्ति दे सुबुद्धि
नाद स्वर से पुकारते.
भारती दास✍️