उष्ण-तरल का सुखद मिलन है
शांत हुई बूंदों से तपन है
आकाश में बादल छाये हैं
धरती की प्यास बुझाये हैं
समस्त सृष्टि के पालनकर्ता
अर्जुन के प्यारे प्राण सखा
अधर्म का अंत करने के हेतु
धर्म की आस्था जगाने हेतु
सारथि बनकर रथ हांके थे
भूमि का क्षोभ संताप देखे थे
नज़रें जहां भी जाती छल था
विविध क्लेश को सहता मन था
अधरों पर स्मित था निश्छल
थे बलिदानी वे त्याग के संबल
दीन जनों के बने सहारे
कठिन क्षणों में उन्हें उबारे
पीताम्बर धारी भगवान
लाये भक्ति का पैगाम
भक्तों में उत्साह जगाने
रथ पर आये श्याम सलोने.
भारती दास ✍️
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