Saturday, 29 May 2021

गिला यही है भाग्य विधाता

 गिला यही है भाग्य विधाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

चलते संग-संग साथ ये सारे

दर्द अनेकों गम बहुतेरे

दृश्य विकट सा मन घबराता 

भाग्य कभी भी साथ न देता....

छुप-छुप रहती खुशी कहीं पर

मूंदती आंखें भागती छूकर

नैन विकल बस नीर बहाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

था धीरज और धैर्य का संगम

बढता रहा अब तक ये जीवन

संयम हरपल टूटता जाता

भाग्य कभी भी साथ न देता....

अंत तमस का दूर न होता

आश का सूरज उग न पाता

सांसों से ही हर इक नाता

भाग्य कभी भी साथ न देता.....

भारती दास ✍️


Tuesday, 25 May 2021

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती


अंधेरे हो या चाहे उजाले

सहम-सहम कर चलती सांसे

जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती

वो स्पंदन भरती आहें.

उथल-पुथल सी मची हुई है

समय की बेबस धारे हैं

कुढ़ते खीजते वक़्त ये बीतते

विरान सी सांझ सकारे हैं.

द्वार-द्वार पर आंखें नम है

गम से भरे नजारे हैं

क्षुब्ध व्यथा से जूझ रहे हैं

टूटे जिनके सितारे हैं.

भव भय दूर नहीं होते हैं

संकट में तन मन सारे हैं

भूख प्यास से बिलखते अभागे

जो हुये अनाथ बेसहारे हैं

दुखी निराश हताश हृदय ने

संशय में हिम्मत हारे हैं.

विकल करुण निरीह की आशा

अब ईश्वर के ही सहारे हैं.

भारती दास ✍️.


Wednesday, 19 May 2021

क्षितिज के छोर से

 क्षितिज के छोर से

गरजते हुए जोर से

घटाओं की शोर से

गिरी बूंद सब ओर से.

बौछार की उल्लास में

धरती की हर प्यास में

विह्वल कली की आश में

सुमन की सुवास में.

बरस रहा मुदित गगन

बुझ गया तृषित मन

तरू लता हुई मगन

पी रहा सौरभ पवन.

धरा की सुगंध से

मदभरी गंध से

हर्ष और आनंद से

नेहभरी बूंद से.

मिट गई सारी तपन

बचपन हंसे उघड़े बदन

उछाल कर सलिल कण

खिलखिला उठा चमन.

भारती दास ✍️

Thursday, 13 May 2021

औरों के हित जी ना पाये


दीपक के बुझने से पहले

हंसा खूब अंधेरा

अंधकार को दिया चुनौती

अंत हो गया तेरा.

दीपक मुस्काया फिर बोला

अंत है निश्चित सबका

अगर नहीं रहता उजाला

तम भी कहां ठहरता.

इस संसार में आना-जाना

हर दिन लगा ही रहता

है उद्देश्य जीव का सुंदर

 मौत परम सुख पाता.

बनता तमस विषाद का कारण

सिर्फ समस्यायें देता

रोशनी मन में ऊर्जा देकर

निदान कई सूझाता.

महामारी के खिलाफ में

संघर्ष सदा है जारी

लाखों लोगों ने जान गंवाई

नहीं माने जिम्मेदारी.

पैसों को अहम बनाते

नहीं देखते लाचारी

जीवन रक्षक चीज़ों से

करते हैं गद्दारी.

संवेदन न बन पाये तो

बने ना दुख का कारण

औरों के हित जी ना पाये

तो अभिशापित है जीवन.

भारती दास ✍️

Friday, 7 May 2021

ये धरती भी तब हंसती है

 


पिता-पुत्री ने मिलकर साथ
कोरोना से पा लिया निजात
खुशी बहुत है हर्ष अगाध
स्वस्थ रहे बस यही है आश.
कौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
कहर झेलती ये जमीन है
कहां सूकून है कहां चैन है
दर्द को ढोता मन बेचैन है.
अमीर होती या गरीब होती
सबको कहां नसीब होती
वो ममता जो करीब होती
मां है जिसे खुशनसीब होती.
कितनी सुंदर तब लगती है
जब स्नेहिल थपकी देती है
खुश होती है मुस्काती है
हमें प्यार भी सिखलाती है.
अनंत वेदना वह सहती है
मूक अश्क बहती रहती है
मां की गरिमा जब बढ़ती है
ये धरती भी तब हंसती है.
प्रकृति प्रदत्त मातृत्व उपहार
है अद्वितीय अनुपम सा प्यार
समस्त माताओं को आभार
उत्सव बन आया त्योहार.
भारती दास ✍️