Saturday, 18 June 2016

वो पिता हमारे कहाँ गये



गोद में जिनकी खेले-कूदे
छाँव में जिनके सोये-जागे
ममता में जिनके बड़े हुये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
ऊँगली पकड़ कर हमें चलाया
क़दमों पर चलना सिखलाया
वो मृदु अवलंबन छूट गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
करुणा उनकी बहती निश्छल
बनी चेतना हरपल निर्मल
वो भाव ह्रदय के रूठ गये  
वो पिता हमारे कहाँ गये.
जिनके शब्दों से विचार मिली
संयम-शिक्षण-व्यवहार मिली
वो गूंज-भरी स्वर टूट गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
जिसने सपनों को बोया था
लहू से तृष्णा को सींचा था
वो ख्वाब नैन के मूंद गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
त्याग दिये सुख अपने सारे
दुःख-पीड़ा सब भूल के हारे
वो स्नेह के धारे सूख गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.

   

Saturday, 11 June 2016

अद्वितीय है राधा का प्रेम



पूरब में सूरज ने झांका
लेकर लाल किरण की आभा
सविता का अभिवादन करने
चिड़ियां गाती गीत सुहाने
स्वागत में झूमते ये पेड़
जैसे आनंद रहा बिखेर
कल-कल बहती यमुना की धारा
उत्सव सी लगता जग सारा
वृक्ष से लिपटी लताये-वेलें
पुष्पित पौधे सुगंध बिखेरे
कितना सुन्दर कितना पावन
सौन्दर्य लुटाती दृश्य मनोरम
राधा के संग बैठे मोहन
नियति-प्रकृति का हो जैसे संगम
मधुप पालती जिनकी अलकें
उन नैनों में नेह ही छलकें
वहां दुःख और शोक नहीं था
वो धरती नहीं कोई और लोक था   
सीमाओं बंधन से परे था
पवित्र प्रेम जो उनमे भरा था
कठिनाईयों को ओढ़ चली थी
प्रेम डगर की ओर बढ़ी थी
नीतियों के संग रहती रीतियाँ
भटकती रही थी उनकी प्रीतियां
इच्छाओं सपनो को वार
अपना जीवन करके निसार
त्याग करी थी चिर अभिलाषा
अमर कर गयी प्रेम की भाषा
जग विदित है उनका प्रेम
अद्वितीय है राधा का प्रेम.         

Friday, 3 June 2016

सावित्री – सत्यवान


सावित्री-सत्यवान की
अनमिट है कहानी
नए रूप में परिवर्तित है
उनकी कथा पुरानी.
सावित्री की कथा ये कहती
अद्भुत है नारी की शक्ति
श्रद्धा-भक्ति तप की मूर्ति
अथक मनोबल थी सावित्री
इस महाकाव्य के सारे पात्र
सत्य-गर्भित है पूर्णतः आज    
प्रखर-प्रचंड ओज के साथ
लोक-मंगल सुख की सौगात
बुद्धि-विवेक से थी वो उन्नत
धीर-गंभीर-स्थिर सी मस्तक
सवितादेव से ज्योति लेकर
वो प्राणों की पुत्री बनकर
सृष्टि की वो शक्ति बनकर
अवतरित हुई थी धरती पर
सत्यवान की जीव आत्मा
ईश्वर की थी गूढ़ प्रेरणा
द्युत्मसेन का वो अंधापन
मानव का है अँधा सा मन
अपनी ऊर्जा-बल को खोकर
व्यक्ति भटकता संसार में दर-दर
अश्वपति का पुत्र को पाना
नव जीवन को पुनः बसाना
सावित्री का तीन वरदान
साधना का है तीन आयाम
पहला – जीवन में सुचितापन
दूसरा – जीव स्वरुप का चिंतन
तीसरा – खुद में हो सौ सद्गुण
दर्प-मोह का हो ना रुदन
बरगद के पेड़ों का पूजन
प्रकृति-प्रेम का सुन्दर दर्शन
सावित्री का ये मर्म है जाना
पूजा-प्रकृति-धर्म पहचाना
अध्यात्म तत्व से की उर आलोकित
मानव आत्मा को करके ज्योतित
भारत की शाश्वत गौरव बन
हरती जन-मन का भव-भय-भ्रम .