Sunday, 29 December 2013

नव वर्ष मुबारक हो



नये वर्ष ने दी है दस्तक
नव चिंतन से भर ले मस्तक
शुभ –संकल्प भरा नव युग हो .
नव वर्ष मुबारक हो .
बीता-साल अब यादों में है
सीख-समझ की वादों में है
करुण- कराह न दर्दे-अश्क हो.
नव वर्ष मुबारक हो .
रक्त के धब्बे सूखे नहीं है
टीस-दर्द के मिटे नहीं है
अब ना खूनी-खेल सहज हो .
नव वर्ष मुबारक हो .
Happy New Year-2014    

Tuesday, 17 December 2013

अरविन्द चले सत्ता की ओर



राजनीती में यही है शोर
आम आदमी का है जोर
जनता के बनकर सिरमोर
अरविन्द चले सत्ता की ओर
अन्ना के सहयोगी बनकर
आन्दोलन में खड़े थे डटकर
लोकपाल के बिल को लेकर
हो गए  प्रचलित –प्रखर
अब सत्ता की आई बारी
मुद्दों की करके तयारी
एक सपना साकार होगा
नव - तंत्र का अवतार होगा
राजनीती का पथ है भ्रष्ट
सीधे लोग हो जाते त्रस्त
बेईमान की जगह वहां है
ईमानदार की जगह कहाँ है
नेताओं के पंगु विचार
जूझते गरीव और लाचार
‘’आप’’बात बनाना छोड़े
जनता को आजमाना छोड़े
युग के अनुरूप हुआ चुनाव
लोगों ने देखा भोर का ख्वाव
अब अपना वादा निभाए
कार्य करे वो ना कतराए . 

Friday, 6 December 2013

मौन की शक्ति



मौन की शक्ति गूढ़ अपार
जीवन शिक्षण के आधार
अंतर मन को मिलती शक्ति
महान कार्य की होती सिद्धि
मूक रवि के ढलने का स्वर
सब पशु –पक्षी आ जाते घर
निःशब्द रात का प्रणय-निवेदन
शशि- रश्मि का मौन समर्पण
प्यासी धरती की अकुलाहट
प्यास बुझाते बादल झट-पट
मौन ही मौन का है ये स्वर
कर्म का  रूप लेकर प्रखर
हर घटक के साथ लगाव
नहीं कोई बैर न कोई दुराव
चाणक्य का वो मौन संकल्प
जन्मा अतुल भारत अखंड
दीपक भी तो मौन ही रहता
अंधकार में राह दिखाता
पुष्पें भी तो रोज ही खिलता
बिना स्वार्थ के खूशबु देता
       अनंत काल से खड़ा हिमालय        
योगी-यति-मुनि का आलय
मौन ही रहकर सेवा करता
देह गला कर गंगा देता
प्रकृति का अनुपम ये प्यार
जीवों में करती संचार
अहंकार ना कोई आसक्ति
मौन है भक्ति मौन है शक्ति .

Saturday, 30 November 2013

बालिग बनकर कब सोचेंगे



                  

तन से बालिग बन बैठे है
मन से अब तक ही छोटे है
बढ़ चढ़ कर अपराध किये है
धर्म के धंधे साथ लिए है
त्याग- तपस्या कुछ नहीं भाता
बनते स्वार्थी पीड़ा दाता
जाट –पांत का भेद बढ़ाते
पाप –पतन की राह पर चलते
ढृढ –संकल्प हुए अधूरे
वेद मंत्र पड़े है बिखरे
ईमान-आदत –चरित्र सिद्धान्त
ये सब है कहने की बात
नैतिकता कहाँ से लाये
हो चुका जो कबसे पराये
हिंसा- हत्या चोरी –लूट
दुर्बल मन की है करतूत
इंसानियत अपनाना होगा
प्रयास सबों को करना होगा
कुत्सित विचार को छोड़ना होगा
बालिग बनकर सोचना होगा