Saturday, 10 December 2016

क्षेत्रे क्षेत्रे कर्म कुरु



प्रकृति ने हर जीव को
कर्म क्षेत्र से बांधा है
नियति ने भी कर्म को
धर्म से जोड़ा नाता है.
शिक्षक को अपने शिक्षण से
अज्ञान का तम मिटाना है
उज्ज्वल भविष्य के लिए
ज्ञान की रश्मि फैलाना है.
सैनिक जैसे संरक्षण में
सीमा पर भी मुस्काते हैं
जब-तक सांसे बुझ न जाती
प्राण-प्रदीप जलाते हैं.
धर्म-पुरोहित को जहाँ से
अंध-विश्वास भगाना है
आडम्बर के कांटे चुनकर
मन को स्वच्छ बनाना है.
हर नारी को प्यार से
इक परिवार बसाना है
संवेदन का सुमन खिलाकर
प्रेमालय को सजाना है.
अपने-अपने कर्मभूमि को 
धर्म का क्षेत्र बनाना है.
सद्भावों और सद्चिन्तन से
प्रेरणा बनकर मुस्काना है.
कर्म ही धर्म है इसे मानकर
क्षेत्रे-क्षेत्रे कर्म कुरु
गीता का सन्देश यही है
करे सदा शुभ कर्म शुरू.

Sunday, 4 December 2016

विश्व मंच पर उदित हुए



अनुभूतियों का कोमल प्रभात
संदेशा देती है विहान का
कोलाहल में थकी दोपहर
द्योतक है दिवस् के अवसान का.
संवेदना कभी नहीं मरती
अत्याचारी उन्हें दबाते हैं
दुर्भावों के कांटे बो कर
पल-पल उसे चुभाते  हैं.
समय-समय पर करवट लेता
परिवर्तन का प्रचंड प्रवाह
द्रोह से जब निराशा होती
चाहता मन अनुराग की राह.
साँझ-उषा जैसा ये जीवन
पीड़ित थकित मन होता
कर्महीन बन खोजता फिरता
जीवन में बस प्रभुता.
नियम वहीँ पर बनते हैं
जहाँ सभ्यता जीते हैं
उसे विकास की दशा मानकर
जन सब शीश झुकाते हैं.
विश्व-मंच पर उदित हुये
नव जीवन के सूत्रधार
अपवाद बने वो मानवता के
ज्ञान-धर्म-कर्म के आधार.