सफ़ेद बालों से
होती पहचान
बुढ़ापा है जीवन
की शान
सूर्योदय की पहली
लाली
बचपन की मौजे
मतवाली
दोपहर की प्रखर
सी किरणें
उमंग-तरंग जो तपती
मन में
जैसे सूर्य की
गोधूली शाम
वैसे ही मनुष्य करता विश्राम
उम्र की हर पराव
चढ़कर
बुढ़ापा आता है
समय पर
लेकर सुन्दर सोच
महान
सुभग सृजन करके
अविराम
देकर अपनी क्षमता व प्राण
गरिमामय चिंतन
अभिराम
लोक हित में उपकारी
काम
करते हैं निज
देकर ज्ञान
अनुभव की सुंदर धार
से
अज्ञान-तम को
प्यार से
प्रेरणाओं में रंग
भरकर
परिवार में आदर्श
बनकर
परंपरा के साथ
चलकर
मार्गदर्शन करते निरंतर
होकर सदा
स्फूर्तिवान
जीते हैं जो उम्रे
तमाम
वही बुढ़ापा है
महान
कहलाते हैं जीवन की
शान।
भारती दास ✍️