Friday, 7 May 2021

ये धरती भी तब हंसती है

 


पिता-पुत्री ने मिलकर साथ
कोरोना से पा लिया निजात
खुशी बहुत है हर्ष अगाध
स्वस्थ रहे बस यही है आश.
कौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
कहर झेलती ये जमीन है
कहां सूकून है कहां चैन है
दर्द को ढोता मन बेचैन है.
अमीर होती या गरीब होती
सबको कहां नसीब होती
वो ममता जो करीब होती
मां है जिसे खुशनसीब होती.
कितनी सुंदर तब लगती है
जब स्नेहिल थपकी देती है
खुश होती है मुस्काती है
हमें प्यार भी सिखलाती है.
अनंत वेदना वह सहती है
मूक अश्क बहती रहती है
मां की गरिमा जब बढ़ती है
ये धरती भी तब हंसती है.
प्रकृति प्रदत्त मातृत्व उपहार
है अद्वितीय अनुपम सा प्यार
समस्त माताओं को आभार
उत्सव बन आया त्योहार.
भारती दास ✍️

21 comments:

  1. जिसने भी कोरोना से विजय पाई .... उन को बहुत दुआएं ... स्वस्थ रहें .

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद मीना जी

    ReplyDelete
  3. धन्यवाद संगीता जी

    ReplyDelete
  4. माँ की ममता की महिमा को बहुत ही सुंदर तरीके व्यक्त किया है आपने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ज्योति जी

      Delete
  5. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अमृता जी

      Delete
  7. बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुराधा जी

      Delete
  9. करोना को हरा कर आना और भी कई लड़ने वालों को हिम्मत से जाता है ... बहुत शुभकामनाएँ ... अच्छी रचना है ...

    ReplyDelete
  10. बहुत ही आशापूर्ण सामयिक रचना,बहुत लोग इस रचना से प्रेरणा लेंगे । आपको बहुत शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  11. धन्यवाद जिज्ञासा जी

    ReplyDelete
  12. कौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
    कहर झेलती ये जमीन है
    कहां सूकून है कहां चैन है
    दर्द को ढोता मन बेचैन है.---बहुत अच्छी रचना है...। खूब बधाई

    ReplyDelete
  13. धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  14. जी बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete