पिता-पुत्री ने मिलकर साथ
कोरोना से पा लिया निजात
खुशी बहुत है हर्ष अगाध
स्वस्थ रहे बस यही है आश.
कौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
कहर झेलती ये जमीन है
कहां सूकून है कहां चैन है
दर्द को ढोता मन बेचैन है.
अमीर होती या गरीब होती
सबको कहां नसीब होती
वो ममता जो करीब होती
मां है जिसे खुशनसीब होती.
कितनी सुंदर तब लगती है
जब स्नेहिल थपकी देती है
खुश होती है मुस्काती है
हमें प्यार भी सिखलाती है.
अनंत वेदना वह सहती है
मूक अश्क बहती रहती है
मां की गरिमा जब बढ़ती है
ये धरती भी तब हंसती है.
प्रकृति प्रदत्त मातृत्व उपहार
है अद्वितीय अनुपम सा प्यार
समस्त माताओं को आभार
उत्सव बन आया त्योहार.
भारती दास ✍️
जिसने भी कोरोना से विजय पाई .... उन को बहुत दुआएं ... स्वस्थ रहें .
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteमाँ की ममता की महिमा को बहुत ही सुंदर तरीके व्यक्त किया है आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद अमृता जी
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
Deleteकरोना को हरा कर आना और भी कई लड़ने वालों को हिम्मत से जाता है ... बहुत शुभकामनाएँ ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत ही आशापूर्ण सामयिक रचना,बहुत लोग इस रचना से प्रेरणा लेंगे । आपको बहुत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
ReplyDeleteकौन श्रेष्ठ है कौन हीन है
ReplyDeleteकहर झेलती ये जमीन है
कहां सूकून है कहां चैन है
दर्द को ढोता मन बेचैन है.---बहुत अच्छी रचना है...। खूब बधाई
धन्यवाद सर
ReplyDeleteजी बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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