Thursday, 13 May 2021

औरों के हित जी ना पाये


दीपक के बुझने से पहले

हंसा खूब अंधेरा

अंधकार को दिया चुनौती

अंत हो गया तेरा.

दीपक मुस्काया फिर बोला

अंत है निश्चित सबका

अगर नहीं रहता उजाला

तम भी कहां ठहरता.

इस संसार में आना-जाना

हर दिन लगा ही रहता

है उद्देश्य जीव का सुंदर

 मौत परम सुख पाता.

बनता तमस विषाद का कारण

सिर्फ समस्यायें देता

रोशनी मन में ऊर्जा देकर

निदान कई सूझाता.

महामारी के खिलाफ में

संघर्ष सदा है जारी

लाखों लोगों ने जान गंवाई

नहीं माने जिम्मेदारी.

पैसों को अहम बनाते

नहीं देखते लाचारी

जीवन रक्षक चीज़ों से

करते हैं गद्दारी.

संवेदन न बन पाये तो

बने ना दुख का कारण

औरों के हित जी ना पाये

तो अभिशापित है जीवन.

भारती दास ✍️

16 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. 👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
    हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏🙏

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  3. धन्यवाद मनीषा जी

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  4. धन्यवाद मीना जी

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  5. सुंदर प्रस्तुति

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  6. बहुत सुंदर।

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  7. धन्यवाद ज्योति जी

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  8. सामायिक सटीक चित्रण ।
    गहन संवेदनशील।

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  9. धन्यवाद कुसुम जी

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  10. अच्छी कविता ।आपको हार्दिक शुभकामनाएं

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  11. संवेदन न बन पाये तो

    बने ना दुख का कारण

    औरों के हित जी ना पाये

    तो अभिशापित है जीवन.बहुत सुंदर भावों भरी कविता ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  12. बहुत बहुत सुंदर रचना

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  13. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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