दीपक के बुझने से पहले
हंसा खूब अंधेरा
अंधकार को दिया चुनौती
अंत हो गया तेरा.
दीपक मुस्काया फिर बोला
अंत है निश्चित सबका
अगर नहीं रहता उजाला
तम भी कहां ठहरता.
इस संसार में आना-जाना
हर दिन लगा ही रहता
है उद्देश्य जीव का सुंदर
मौत परम सुख पाता.
बनता तमस विषाद का कारण
सिर्फ समस्यायें देता
रोशनी मन में ऊर्जा देकर
निदान कई सूझाता.
महामारी के खिलाफ में
संघर्ष सदा है जारी
लाखों लोगों ने जान गंवाई
नहीं माने जिम्मेदारी.
पैसों को अहम बनाते
नहीं देखते लाचारी
जीवन रक्षक चीज़ों से
करते हैं गद्दारी.
संवेदन न बन पाये तो
बने ना दुख का कारण
औरों के हित जी ना पाये
तो अभिशापित है जीवन.
भारती दास ✍️
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ReplyDelete👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏🙏
धन्यवाद मनीषा जी
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
ReplyDeleteसामायिक सटीक चित्रण ।
ReplyDeleteगहन संवेदनशील।
धन्यवाद कुसुम जी
ReplyDeleteअच्छी कविता ।आपको हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसंवेदन न बन पाये तो
ReplyDeleteबने ना दुख का कारण
औरों के हित जी ना पाये
तो अभिशापित है जीवन.बहुत सुंदर भावों भरी कविता ।
धन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
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