Wednesday, 19 May 2021

क्षितिज के छोर से

 क्षितिज के छोर से

गरजते हुए जोर से

घटाओं की शोर से

गिरी बूंद सब ओर से.

बौछार की उल्लास में

धरती की हर प्यास में

विह्वल कली की आश में

सुमन की सुवास में.

बरस रहा मुदित गगन

बुझ गया तृषित मन

तरू लता हुई मगन

पी रहा सौरभ पवन.

धरा की सुगंध से

मदभरी गंध से

हर्ष और आनंद से

नेहभरी बूंद से.

मिट गई सारी तपन

बचपन हंसे उघड़े बदन

उछाल कर सलिल कण

खिलखिला उठा चमन.

भारती दास ✍️

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर मधुर शब्द चयन

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  3. धन्यवाद सरिता जी

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