क्षितिज के छोर से
गरजते हुए जोर से
घटाओं की शोर से
गिरी बूंद सब ओर से.
बौछार की उल्लास में
धरती की हर प्यास में
विह्वल कली की आश में
सुमन की सुवास में.
बरस रहा मुदित गगन
बुझ गया तृषित मन
तरू लता हुई मगन
पी रहा सौरभ पवन.
धरा की सुगंध से
मदभरी गंध से
हर्ष और आनंद से
नेहभरी बूंद से.
मिट गई सारी तपन
बचपन हंसे उघड़े बदन
उछाल कर सलिल कण
खिलखिला उठा चमन.
भारती दास ✍️
बहुत सुन्दर मधुर शब्द चयन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद सरिता जी
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