Friday, 30 July 2021

दोस्त मन के होते चिकित्सक

 


कहते ज्ञानी कवि विशारद
दोस्त मन के होते चिकित्सक
अवसाद मिटाते होते सहायक
दूर भगाते गम के सायक.
रखते विचार भावना शुद्ध
करते नहीं वो पथ अवरुद्ध
साझा करते सुख और दुख
मुश्किल में नहीं होते विमुख.
आनंद-हंसी बरसाते हैं
अवगुण तमाम अपनाते हैं
पलकों से पीड़ा हरते हैं
पुलकित अंकों में भरते हैं.
मुसीबत में देते हैं साथ
गिरने पर नहीं छोड़ते हाथ
करते सदा ही हित की बात
मित्र नहीं देते कभी घात.
लेकिन बदल गया परिवेश
मित्रों की पहचान और वेश
सच्ची मित्रता नहीं है शेष
परिभाषा अब बनी विशेष.
टिका स्वार्थ पर है ये रिश्ता
कुत्सित हो गई है मानसिकता
चित्त का वो सुंदर कोमलता
सिमट गई मित्र की पावनता.
भारती दास ✍️

19 comments:

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  2. लेकिन बदल गया परिवेश
    मित्रों की पहचान और वेश
    सच्ची मित्रता नहीं है शेष
    परिभाषा अब बनी विशेष.
    टिका स्वार्थ पर है ये रिश्ता
    कुत्सित हो गई है मानसिकता
    चित्त का वो सुंदर कोमलता
    सिमट गई मित्र की पावनता.
    सौ टका सही बात कही है आपने! बहुत बेहतरीन कविता! 👍👍👍

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  3. धन्यवाद मनीषा जी

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  4. मित्रता की सुंदर परिभाषा, बहुत शुभकामनाएं आपको।

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  5. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  6. बहुत सुंदर विवेचन मित्रता का।
    सच ही कहा है आपने,
    दोस्त मन के होते चिकित्सक
    अवसाद मिटाते होते सहायक
    दूर भगाते गम के सायक.
    रखते विचार भावना शुद्ध
    करते नहीं वो पथ अवरुद्ध।
    सादर।

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  7. धन्यवाद मीना जी

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  8. बहुत बहुत सुन्दर

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  9. समय के साथ बदलती परिभाषा किन्तु कुछ मित्र अभी भी सच्चे होते हैं। बहुत सुन्दर कविता।

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  10. धन्यवाद अनुपमा जी

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