Friday, 20 August 2021

पृथ्वी का उत्सव ऋतु वर्षा

 

तपती हुई ग्रीष्म के बाद

बारिश की पड़ती है फुहार

प्राण दायिनी वर्षा से ही

जीवन में होता संचार.

उमड़ घुमड़ कर काले बादल

लयबद्ध संगीत सुनाते हैं  

नभ का सीना चीरती चपला

करते भयभीत डराते हैं.

गरजते मेघ कड़कती बिजली

नाचते मयूर पपीहे कुहुकते

झींगुर दादुर के सुर ताल

उर के तार तरंगित करते.

हरीतिमा की चादर ओढ

प्रकृति नयी सी सजती है

मनोहारी नव छटा मोहती

उल्लास सुखद सी लगती है.

आनंद दाता ही नहीं है घन

सेवा भी सिखलाते हैं

अपना ही अस्तित्व मिटाकर

जलप्रदान कर देते है.

पृथ्वी का उत्सव ऋतु वर्षा

अभिनव सृजन करता है

कई सुंदर त्योहार सजाकर

अनगिनत उपहार ले आता है.

भारती दास ✍️



10 comments:

  1. सुंदर वर्णन वर्षा ऋतु का !! सुंदर रचना |

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनुपमा जी

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  2. वर्षा ऋतु सम्पूर्ण मानवता पर उपहार है। सुन्दर पंक्तियाँ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  3. वर्ष ऋतु स्वयं ही एक त्योहार है और साथ में अनेक त्योहार लाती भी है ।।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी

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  5. प्रकृति का मनोहारी चित्रण !

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

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  7. वर्षा बहुत कुछ लाती है, सपने संजोती है, विरह के गीत लाती है ...
    कुछ पल खुशियाँ ला कर लौट जाती है ...
    सुन्दर गीत है ...

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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