तपती हुई ग्रीष्म के बाद
बारिश की पड़ती है फुहार
प्राण दायिनी वर्षा से ही
जीवन में होता संचार.
उमड़ घुमड़ कर काले बादल
लयबद्ध संगीत सुनाते हैं
नभ का सीना चीरती चपला
करते भयभीत डराते हैं.
गरजते मेघ कड़कती बिजली
नाचते मयूर पपीहे कुहुकते
झींगुर दादुर के सुर ताल
उर के तार तरंगित करते.
हरीतिमा की चादर ओढ
प्रकृति नयी सी सजती है
मनोहारी नव छटा मोहती
उल्लास सुखद सी लगती है.
आनंद दाता ही नहीं है घन
सेवा भी सिखलाते हैं
अपना ही अस्तित्व मिटाकर
जलप्रदान कर देते है.
पृथ्वी का उत्सव ऋतु वर्षा
अभिनव सृजन करता है
कई सुंदर त्योहार सजाकर
अनगिनत उपहार ले आता है.
भारती दास ✍️
सुंदर वर्णन वर्षा ऋतु का !! सुंदर रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनुपमा जी
Deleteवर्षा ऋतु सम्पूर्ण मानवता पर उपहार है। सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteवर्ष ऋतु स्वयं ही एक त्योहार है और साथ में अनेक त्योहार लाती भी है ।।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteप्रकृति का मनोहारी चित्रण !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteवर्षा बहुत कुछ लाती है, सपने संजोती है, विरह के गीत लाती है ...
ReplyDeleteकुछ पल खुशियाँ ला कर लौट जाती है ...
सुन्दर गीत है ...
बहुत बहुत धन्यवाद सर
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