Saturday, 3 July 2021

स्वप्न सुनहरे सजाने चली है


मृदुल हास से विमल आस से
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है
संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
हर्ष का दीप जलाने चली है.....
मौन मनन करती थी हरपल
पाठ गहन पढती थी पलपल
पर अधीर विचलित होती थीं
करुण नयन चिंतित होती थी
अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
मृदु हृदय हरसाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
चिकित्सा के विस्तृत आंगन में
मुदित मगन पुलकित हो मन में
नव अवसर को अंक लगाकर
अरमानों के पंख लगाकर
खुशी-खुशी से कर्म के पथ पर
निज कर्तव्य निभाने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
मानवता की सेवा करना
स्नेह सरलता सदा ही रखना
कदमों में यश और वैभव हो
चिर सुरभित जीवन का पथ हो
नई उमंग से उत्साहित हो
मधुर अधर मुस्काने चली है
स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
भारती दास ✍️

18 comments:

  1. बधाई इस सृजन हेतु !!स्वप्न साकार हो !!

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    1. धन्यवाद अनुपमा जी

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    1. धन्यवाद संगीता जी

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  3. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति भारती जी ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी

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  4. बहुत अच्छी रचना रचना | सुन्दर भाव |

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  5. धन्यवाद सर

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  6. मृदुल हास से विमल आस से
    स्वप्न सुनहरे सजाने चली है
    संघर्ष अनंत था श्रांत वर्ष था
    हर्ष का दीप जलाने चली है.....
    मौन मनन करती थी हरपल
    पाठ गहन पढती थी पलपल
    पर अधीर विचलित होती थीं
    करुण नयन चिंतित होती थी
    अनंत फ़िक्र सब दूर हटा कर
    मृदु हृदय हरसाने चली है
    स्वप्न सुनहरे सजाने चली है.....
    वाह! अद्भुत भाव और विलक्षण शब्द चयन। मन मोह लिया इन पंक्तियों ने। बधाई और आभार!!!

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  7. धन्यवाद सर

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  8. बहुत ही उम्दा और खूबसूरत रचना !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी

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  9. वाह बहुत सुंदर रचना.
    चिकित्सा के आंगन में खूब सेवा करें.. खूब नाम कमायें...
    ढेरों शुभकामनाएं.
    नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं

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    1. धन्यवाद रोहितास जी

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  10. बहुत सुंदर शुभकामनाएँ!

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  11. धन्यवाद सर

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