Friday, 25 June 2021

जब सुख संध्या घिर आती है


जब सुख संध्या घिर आती है

अनुराग-राग बरसाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

सूर्य किरण ढल जाती थककर

सांझ स्नेह बरसाती सजकर

अरुनाभ अधर मुस्काती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते

संग कृषक के पशु घर आते

आह्लाद सूकून भर लाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

निशा नशीली आती मनाने

भाल चूम लगती हर्षाने

रक्ताभ नजर इठलाती है

जब सुख संध्या घिर आती है....

भारती दास ✍️


20 comments:

  1. सुन्दर प्रकृति का वर्णन गीतमय काव्य में !!

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    1. धन्यवाद अनुपमा जी

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  2. निशा नशीली आती मनाने
    भाल चूम लगती हर्षाने
    रक्ताभ नजर इठलाती है
    जब सुख संध्या घिर आती है....
    ....बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया है आपने अपने शब्दों से। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीया भारती जी।

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  3. जब सुख संध्या घिर आती है

    अनुराग-राग बरसाती है

    जब सुख संध्या घिर आती है....,,,, बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शुभकामनाएँ ।

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  4. धन्यवाद मधुलिका जी

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  5. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन झरने-सा कल-कल बहता।
    सादर

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद पम्मी जी

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  7. सुंदर सांध्य वर्णन बधाई

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  8. धन्यवाद सर

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  9. धन्यवाद संगीता जी

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  10. प्रकृति के प्रति सुंदर भावों का लाजवाब काव्यचित्र।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  11. संध्या के रँग लिए बहुत सुन्दर प्रसंग ... सभी को बाखूबी शब्दों का आवरण पहनाया है आपने ...

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  12. धन्यवाद सर

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  13. बहुत बहुत सुन्दर |

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  14. धन्यवाद सर

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