जब सुख संध्या घिर आती है
अनुराग-राग बरसाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
सूर्य किरण ढल जाती थककर
सांझ स्नेह बरसाती सजकर
अरुनाभ अधर मुस्काती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
प्रफुल्ल उरों से धूल उड़ाते
संग कृषक के पशु घर आते
आह्लाद सूकून भर लाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
निशा नशीली आती मनाने
भाल चूम लगती हर्षाने
रक्ताभ नजर इठलाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
भारती दास ✍️
सुन्दर प्रकृति का वर्णन गीतमय काव्य में !!
ReplyDeleteधन्यवाद अनुपमा जी
Deleteनिशा नशीली आती मनाने
ReplyDeleteभाल चूम लगती हर्षाने
रक्ताभ नजर इठलाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....
....बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया है आपने अपने शब्दों से। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीया भारती जी।
धन्यवाद सर
Deleteजब सुख संध्या घिर आती है
ReplyDeleteअनुराग-राग बरसाती है
जब सुख संध्या घिर आती है....,,,, बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शुभकामनाएँ ।
धन्यवाद मधुलिका जी
ReplyDeleteवाह!बहुत ही सुंदर सृजन झरने-सा कल-कल बहता।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद पम्मी जी
Deleteसुंदर सांध्य वर्णन बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteखूबसूरत चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteप्रकृति के प्रति सुंदर भावों का लाजवाब काव्यचित्र।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteसंध्या के रँग लिए बहुत सुन्दर प्रसंग ... सभी को बाखूबी शब्दों का आवरण पहनाया है आपने ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDelete