Saturday, 19 June 2021

दृष्टि फलक पर टिक जाती है

 

अब पिता जी नही है साथ

सहेज रखी है स्नेह सौगात

गम कड़वे अवसाद भूलाकर

अपने सारे दर्द छुपाकर

करते थे परवाह सदा ही

दिखाते हरदम राह खुदा सी

विधि ने छीना पिता की साया

आठ वर्ष होने को आया

मन कांपा था दिल दहला था

उनके बिना जब दिवस ढला था

दिन अनेकों गुजर गये हैं

यादें हृदय में ठहर गये हैं 

क्लेश दंश सब मोह को तजकर

छोड़ चले सबको पृथ्वी पर

शाश्वत सत्य में लीन हुये थे

पुनीत गंगा में विलीन हुये थे

गर्वित हो झुक जाता शीश

जैसे पिताजी देते आशीष

आंखें बहकर थक जाती है

दृष्टि फलक पर टिक जाती है.

भारती दास ✍️

12 comments:

  1. पिताजी के प्रति सुन्दर भावों भरी रचना। पिताजी को हार्दिक नमन 🙏🙏

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  2. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  3. पिताजी की स्मृतियों में डूबी बेटी की हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
    बहुत सुन्दर और भावसिक्त सृजन ।

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  4. धन्यवाद मीना जी

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  5. मन कांपा था दिल दहला था
    उनके बिना जब दिवस ढला था
    दिन अनेकों गुजर गये हैं
    यादें हृदय में ठहर गये हैं
    यादें ही रह जाती हैं उम्र भर पिता के बगैर मन ढ़ाँढस बंधाना बहुत मुश्किल होता है...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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  6. धन्यवाद सुधा जी

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  7. पिता का साया जब तक रहता है ... इंसान कई बार समझ नहीं पाता उस बरगद को ...
    बाद में वही यादें रह जाती हैं ...

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  8. धन्यवाद सर

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  9. मन भर आया पिता की स्मृतियों में भीगा हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

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  10. धन्यवाद अनीता जी

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  11. बहुत सुन्दर बहुत मार्मिक रचना

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  12. धन्यवाद सर

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