Friday, 1 July 2016

भावों की भव्यता



भावों की भव्यता में ही
काव्य की धारायें बहती 
सौन्दर्य की सुरम्यता में ही
रूपों के माधुर्य निखरती.
कविता एक प्रवाह है
भावों की अभिव्यक्ति है
मन के तार से झंकृत होकर
कथ्य कई कह देती है.
शब्द-निशब्द जब हो जाते हैं
भाव ह्रदय के बहते हैं
हर्ष-विषाद के अभिनव रूप
मधुमय गान बनाते हैं.
कभी हताशा कभी निराशा
जब भी शोर मचाते हैं
नैनों से मोती निकलकर
काव्य की माला पिरोते हैं.
किसी समय की सुखद स्मृति
अतुलनीय सुख पहुंचाते हैं
हरे भरे नव पल्लव सा मन
पुष्पित तरु बन जाते हैं.
भाषा की परिशुद्धता
कविता में नहीं होता
भावों का स्वर लय बन कर
छंद-बद्ध बन जाता.
है यही अभिलाषा मन की
सारी पीड़ा दुःख-सुख रख दूँ
भावनाओं का दीप जलाकर
परमात्मा के सम्मुख रख दूँ.     
        

  

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