गोद में जिनकी खेले-कूदे
छाँव में जिनके सोये-जागे
ममता में जिनके बड़े हुये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
ऊँगली पकड़ कर हमें चलाया
क़दमों पर चलना सिखलाया
वो मृदु अवलंबन छूट गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
करुणा उनकी बहती निश्छल
बनी चेतना हरपल निर्मल
वो भाव ह्रदय के रूठ गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
जिनके शब्दों से विचार मिली
संयम-शिक्षण-व्यवहार मिली
वो गूंज-भरी स्वर टूट गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
जिसने सपनों को बोया था
लहू से तृष्णा को सींचा था
वो ख्वाब नैन के मूंद गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
त्याग दिये सुख अपने सारे
दुःख-पीड़ा सब भूल के हारे
वो स्नेह के धारे सूख गये
वो पिता हमारे कहाँ गये.
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