हे मेघदूत तुम आये
सन्देश प्रीत का लाये
बरसा के नभ से सोना
दारिद्रय तुम मिटाये, हे....
प्यासी पड़ी थी धरती
मुश्किल में जान अटकी
जीवों में प्राण देकर
आनंद सुधा बहाये, हे....
कुसुमित हुई लतायें
हर्षित हुई फिजायें
मन बन गया है उपवन
उर में सुमन खिलाये, हे....
बिजली चमकती जाये
दादुर के सुर सुहाये
रिम झिम के स्वर निरंतर
नई कोई राग गाये, हे....
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