पूर्णचंद्र का अंतिम प्रहर था
मंद मंद चल रहा पवन था
गंगा की लहरें इठलाती
जैसे शैशव वय बलखाती
विश्वनाथ का पूजा अर्चन
करने बैठे ध्यान व वंदन
एकाग्र हो गई सहज चेतना
पूर्ण हो गयी सघन प्रार्थना
अज्ञानता का मिटा अंधेरा
चित्त से दूर हुआ भ्रम सारा
आम्र वृक्ष का मोहक बागान
सुगंधित पुष्प से सजा उद्यान
आचार्य शंकर बैठे थे मौन
ज्ञान-भक्ति में श्रेष्ठ है कौन
जन जन का क्लेश निवारण
अज्ञानी के भटकन का कारण
ज्ञान से जीवन सहज हो जाता
भक्ति प्रभु के पास ले आता
एक वृद्ध थे झुकी कमर थी
दंतहीन मुख दृष्टि सरल थी
हाथों में पुस्तक को थामें
आये थे शंकर से मिलने
कंपित स्वर से बोले विनीत
हे गुरुवर दें ज्ञान की भीख
विद्व जनों में होगा सम्मान
लोग कहेंगे श्रेष्ठ विद्वान
वृद्ध की मनोदशा समझकर
द्रवित हुये थे ये सब सुनकर
इतनी आयु होने पर भी
क्षीण हुयी ना तृष्णा मन की
इच्छाओं आशाओं में नहीं है
ज्ञान कभी शब्दों में नहीं है
दिवस रात्रि और सुबहो शाम
शिशिर बसंत आये तमाम
काल ने कर दी पूरी आयु
पर छोड़ न पाये इच्छा यूंही
मोक्ष समीप तो होने को है
ज्ञान काम न आने को है
हे महामना गोविंद को भजिये
भक्ति की महिमा समझिये
अब केवल है एक उपाय
गोविंद नाम से अमृत पाय
ज्ञान बिना जीवन दुखद है
अंत समय में भक्ति सुखद है
बिन भक्ति मोक्ष सहज नहीं है
ज्ञान भक्ति में भेद यही है
वृद्ध ने उन उपदेश को जाना
ज्ञान से बड़ी भक्ति को माना.
भारती दास ✍️
सुंदर बोध देती रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deleteवाह ... बहुत सुन्दर भाव .....
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
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ReplyDeleteवाह भारती दास जी, बहुत अच्छे ढंग से समझा दिया आपने भक्ति और ज्ञान को....
ReplyDeleteज्ञान बिना जीवन दुखद है
अंत समय में भक्ति सुखद है
बिन भक्ति मोक्ष सहज नहीं है
ज्ञान भक्ति में भेद यही है....वाह
धन्यवाद अलकनंदा जी
Deleteबहुत सुंदर भाव।
ReplyDeleteधन्यवाद पम्मी जी
Deleteअत्यंत सहज,सरल भाव लिए संदेशात्मक कविता काव्य।
ReplyDeleteसस्नेह
सादर।
धन्यवाद श्वेता जी
Deleteभक्ति का ज्योतिर्पुंज अज्ञान रूपी अंधकार को हर ही लेगा।
ReplyDeleteवाह!!!
लाजवाब।
धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी
ReplyDeleteभक्तो हमेशा बुद्धि से ऊपर है ...
ReplyDeleteइश्वर के सामने नतमस्तक होना भवसागर पार होने सा है ...
धन्यवाद सर
ReplyDeleteभक्ति और अध्यात्म का सुंदर बोध कराती अनुपम रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
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