Thursday, 23 December 2021

विशालकाय लिए बदन

 विशालकाय लिए बदन

सुगंध भी बहुत है कम

कहा अकड़ कर गुलाब

मुझसे महक रहा चमन.

गुलाब को घमंड था

निज रंग रूप गंध का

करता था हरदम बखान

मदमस्त सी सुगंध का.

मेरे बड़े शरीर पर

मां सरस्वती बैठकर

भरती है वीणा मे स्वर

ज्ञान का देती है वर.

सौंदर्य बना सौभाग्य है

हूं गंधहीन दुर्भाग्य है

बोला कमल - भाई गुलाब

मेरा यही तो भाग्य है.

हम देश के पहचान हैं

संवेदित मन प्राण हैं

चरित्र में नहीं दोष है

हम स्वार्थी ना महान हैं.

सौंदर्य और सुगंध जैसे

सहकार और सहयोग वैसे

दोनों के ही संयोग से

उन्नति होगा योग से.

हंस पड़ा फिर गुलाब

तोड़ कर अहं का भाव

दोनों ही हैं लाजबाव

हैं बेहतरीन बेहिसाब.

भारती दास ✍️



25 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
    'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

      Delete
    2. बढ़िया भारती जी!
      गुलाब और कमल के बहाने बहुत सुंदर बात कह दी आपने 👌👌

      Delete
    3. बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी

      Delete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी

      Delete
  4. वाह! बहुत ही खूबसूरत सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी

      Delete
  5. बहुत बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

      Delete
  6. वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी

      Delete
  7. शुक्र है कि अहम जल्दी ही टूट गया । और दोनों पुष्प आपस में खुश हो लिए । बेहतरीन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी

      Delete
  8. मान्यवर नमस्कार ,
    असमानता में समानता को दर्शाति आपकी रचना ।
    बहुत सुन्दर ! मनमोहक !

    बहुत कम लोग होते है जनाव जो किचड़ के कमल को गुलाब के सम्मुख रख गुलाब का मान मर्दन करते है -
    वरन पूरी दुनिया गुलाब के गंध से ही मन - मलिन है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर

      Delete
  9. गुलाब और कमल ...
    दोनों अपनी जगह पूर्ण हैं ... बहुत खूब ...

    ReplyDelete
  10. बहुत बहुत धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  11. प्रकृति में हरेक का अपना-अपना स्थान है, सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  12. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी

    ReplyDelete
  13. लाजवाब भावाभिव्यक्ति भारती जी । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।

    ReplyDelete
  14. बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी

    ReplyDelete
  15. कीचड़ में कमल काँटों में गुलाब
    दोनों ही हैं लाजवाब
    बहुत ही सुन्दर संदेशप्रद सृजन
    वाह!!!

    ReplyDelete
  16. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

    ReplyDelete