विशालकाय लिए बदन
सुगंध भी बहुत है कम
कहा अकड़ कर गुलाब
मुझसे महक रहा चमन.
गुलाब को घमंड था
निज रंग रूप गंध का
करता था हरदम बखान
मदमस्त सी सुगंध का.
मेरे बड़े शरीर पर
मां सरस्वती बैठकर
भरती है वीणा मे स्वर
ज्ञान का देती है वर.
सौंदर्य बना सौभाग्य है
हूं गंधहीन दुर्भाग्य है
बोला कमल - भाई गुलाब
मेरा यही तो भाग्य है.
हम देश के पहचान हैं
संवेदित मन प्राण हैं
चरित्र में नहीं दोष है
हम स्वार्थी ना महान हैं.
सौंदर्य और सुगंध जैसे
सहकार और सहयोग वैसे
दोनों के ही संयोग से
उन्नति होगा योग से.
हंस पड़ा फिर गुलाब
तोड़ कर अहं का भाव
दोनों ही हैं लाजबाव
हैं बेहतरीन बेहिसाब.
भारती दास ✍️
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteबढ़िया भारती जी!
Deleteगुलाब और कमल के बहाने बहुत सुंदर बात कह दी आपने 👌👌
बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी
Deleteवाह! बहुत ही खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मनीषा जी
Deleteबहुत बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteवाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
Deleteशुक्र है कि अहम जल्दी ही टूट गया । और दोनों पुष्प आपस में खुश हो लिए । बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
Deleteमान्यवर नमस्कार ,
ReplyDeleteअसमानता में समानता को दर्शाति आपकी रचना ।
बहुत सुन्दर ! मनमोहक !
बहुत कम लोग होते है जनाव जो किचड़ के कमल को गुलाब के सम्मुख रख गुलाब का मान मर्दन करते है -
वरन पूरी दुनिया गुलाब के गंध से ही मन - मलिन है।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteगुलाब और कमल ...
ReplyDeleteदोनों अपनी जगह पूर्ण हैं ... बहुत खूब ...
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteप्रकृति में हरेक का अपना-अपना स्थान है, सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteलाजवाब भावाभिव्यक्ति भारती जी । अत्यन्त सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी
ReplyDeleteकीचड़ में कमल काँटों में गुलाब
ReplyDeleteदोनों ही हैं लाजवाब
बहुत ही सुन्दर संदेशप्रद सृजन
वाह!!!
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
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