मूक बधिर हो या कोई व्यक्ति
तलाश सुखों की होती सबकी
चाहत होती हर एक मन की
हो भविष्य सदा सुंदर सी…
अनुकूल जहां होता है पोषण
अनुरुप वहां होता है बचपन
परंपरा संस्कार का दर्शन
दर्शाता परिवार का चित्रण…
अनुचित आदत रहन-सहन
दम तोड़ता प्रेम समर्पण
नहीं होता कोई अपनापन
दुर्भाग्य ढोंग का होता दर्पण…
शैशव में ही भरता विकार
पनपता रहता द्वेष अपार
टूटता-बिखरता घर संसार
मलते हाथ होते लाचार…
माता-पिता भी तब पछताते
जब महत्व पैसे को देते
बुरी आदतें घर कर जाते
स्वयं समाज से रहते अछूते…
कर्म की खेती चलता रहता
जो बोता है वही है फलता
अंतर्मन भी हर-पल कहता
बदी के बदले बदी ही मिलता…
भारती दास ✍️
सार्थक सन्देश देती रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना और सार्थक सन्देश।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteकर्म की खेती चलता रहता
ReplyDeleteजो बोता है वही है फलता
अंतर्मन भी हर-पल कहता
बदी के बदले बदी ही मिलता…
सार्थक सृजन।।।।।
धन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
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