Saturday, 10 April 2021

लोग नहीं करते हैं चिंतन

 


लापरवाही ने सब छीना
फिर रफ्तार से बढ़ा कोरोना
जानते हैं परिणाम की सीमा
फिर भी चाहते मौत से लड़ना.
गुजरे पल ने खूब सिखाया
समझाया मुश्किल से बचाया
जीवन मूल्य का भेद बताया
फिर भी सबने वही दुहराया.
कहते सुनते थके हर बार
सांसों के रक्षक गये हैं हार
दुख-अतिथि आ पहुंचा द्वार
लेकर ढेरों दर्द उपहार.
बदहाली से करने को जंग
गली-गली फिर हुए हैं बंद
लगे छूटने अपनों के संग
दूर हुये खुशियां-आनंद.
नेताओं की चुनावी रैली
अफरा तफरी जीवन शैली
भीड़-भाड़ उन्मादों वाली
बढ़ाता रहा कोरोना खाली.
अस्पताल में कम है साधन
संकट में है प्राण व जीवन
सेवा कर्मी करते परिश्रम
लोग नहीं करते हैं चिंतन.
भारती दास


 

 

 

10 comments:

  1. सुंदर और समसामयिक रचना,आपको आदर शुभकामनाएं ।

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    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी

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  2. एक लापरवाह जीवन शैली का ही यह भीषण परिणाम है।
    जनजागरण हेतु उपयोगी लेखन।।।

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. धन्यवाद अनुराधा जी

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  5. आज की स्तिथि को दर्शाती हुई बेहतरीन रचना, बधाई हो, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. धन्यवाद ज्योति जी

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