लापरवाही ने सब छीना
फिर रफ्तार से बढ़ा कोरोना
जानते हैं परिणाम की सीमा
फिर भी चाहते मौत से लड़ना.
गुजरे पल ने खूब सिखाया
समझाया मुश्किल से बचाया
जीवन मूल्य का भेद बताया
फिर भी सबने वही दुहराया.
कहते सुनते थके हर बार
सांसों के रक्षक गये हैं हार
दुख-अतिथि आ पहुंचा द्वार
लेकर ढेरों दर्द उपहार.
बदहाली से करने को जंग
गली-गली फिर हुए हैं बंद
लगे छूटने अपनों के संग
दूर हुये खुशियां-आनंद.
नेताओं की चुनावी रैली
अफरा तफरी जीवन शैली
भीड़-भाड़ उन्मादों वाली
बढ़ाता रहा कोरोना खाली.
अस्पताल में कम है साधन
संकट में है प्राण व जीवन
सेवा कर्मी करते परिश्रम
लोग नहीं करते हैं चिंतन.
भारती दास ✍️
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सुंदर और समसामयिक रचना,आपको आदर शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteएक लापरवाह जीवन शैली का ही यह भीषण परिणाम है।
ReplyDeleteजनजागरण हेतु उपयोगी लेखन।।।
धन्यवाद सर
Deleteसार्थक लेखन, उपयोगी रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराधा जी
ReplyDeleteआज की स्तिथि को दर्शाती हुई बेहतरीन रचना, बधाई हो, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
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