मूर्ख बनाते या बन जाते
मखौल उड़ाते या उड़वाते
दोनों ही सूरत में आखिर
हंसते लोग तमाम
छेड़ते नैनों से मृदु-बाण....
मन बालक बन जाता पलभर
कौतुक क्रीड़ा करता क्षणभर
शैशव जैसे कोमल चित्त से
भूलते दर्प गुमान
होते अनुरागी मन-प्राण....
सरल अबोध उद्गार खुशी का
हंसता अधर नादान शिशु सा
क्लेश कष्ट दुख दैन्य भुला कर
सहते सब अपमान
देते शुभ संदेश ललाम....
मूर्ख दिवस का रीत बनाकर
सुर्ख लबों पर प्रीत सजाकर
मनहर हास पलक में भरकर
गाते खुशी से गान
मनाते मूर्ख दिवस अभिराम....
भारती दास ✍️
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जीवन जीते समय इन्हीं हालातों से गुजरना पड़ता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteमूर्ख बनते बनाते भी कितनी प्यारी रचना लिख दी . बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
Deleteवाह वाह सच.ये है कोई मूर्ख नहीं होता ईश्वर किसी से कुछ भी करा ले
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवम यथार्थपूर्ण रचना । समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आलोक जी
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