Sunday, 7 March 2021

मैं धीर सुता मैं नारी हूं

 


सलिल कण के जैसी हूं मैं
कभी कहीं भी मिल जाती हूं
रीत कोई हो या कोई रस्में
आसानी से ढल जाती हूं.
व्योम के जैसे हूं विशाल भी
और लघु रूप आकार हूं मैं
वेश कोई भी धारण कर लूं
स्नेह करूण अवतार हूं मैं.
अस्थि मांस का मैं भी पुतला
तप्त रक्त की धार हूं मैं
बेरहमी से कैसे कुचलते
क्या नरभक्षी आहार हूं मैं.
अर्द्ध वसन में लिपटी तन ये
ढोती मजदूरी का भार हूं मैं
क्षुधा मिटाने के खातिर ही
जाती किसी के द्वार हूं मैं.
मैं धीर सुता मैं नारी हूं
सृष्टि का श्रृंगार हूं मैं
हर रुपों में जूझती रहती
राग विविध झंकार हूं मैं.
भारती दास



 

 

 

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. बहुत सुंदर

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  5. नारी अस्तित्व को उजागर करती सारगर्भित रचना - - साधुवाद सह।

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  6. मैं धीर सुता मैं नारी हूं
    सृष्टि का श्रृंगार हूं मैं
    हर रुपों में जूझती रहती
    राग विविध झंकार हूं मैं.


    बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

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    1. धन्यवाद कामिनी जी

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    1. धन्यवाद संगीता जी

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  8. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  9. नारी के सुंदर गुणों के साथ सुंदर उद्गार।
    सुंदर सरस रचना।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी

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  10. बेहतरीन रचना

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  11. धन्यवाद मीना जी

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  12. धन्यवाद अनुराधा जी

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