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धुआं-धुआं हुआ जहां
गली-गली यहां-वहां
नशे में झूमता फिज़ा
विनाश पथ चला युवा.
चुनौतियों से भागता
विकृतियों को थामता
क्षुद्र-स्वार्थ के लिए
अपराध कर रहा युवा.
महत्त्वाकांक्षा की राह में
सफलता की चाह में
होनहार बोधवान
गुनाह कर रहा युवा.
विलासिता में पल रहा
अश्लीलता में ढल रहा
कुपथ-कुसंग के लिए
विद्रोह कर रहा युवा.
स्वछंदता प्रमुख रही
ममता बिलख रही
घर-समाज के लिए
गुमराह हो रहा युवा.
गुरुर किसको है यहां
कुसूर किसका है कहां
मिथ्या मान के लिए
मदान्ध बन रहा युवा.
भारती दास ✍️
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सराहनीय रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteसही कहा है .. कोई तो इन्हें रोके ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमृता जी
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