" अंग्रेजी में ना होगा काम
फिर ना बनेगा देश गुलाम
डॉ लोहिया की थी अभिलाषा
चले देश में देशी भाषा "
सन पैंसठ में लगे थे नारे
उमंग जोश में भरे थे सारे
छात्रों ने की थी आंदोलन
किये प्रयास अनेक परिश्रम
डरी सहमी सरकार हिली थी
अंग्रेजी की विदाई दिखी थी
लोहिया जी का हुआ निधन
कमजोर हुआ जोशीला मन
संविधान से किया मजाक
बनी नहीं हिन्दी बेबाक
उन्नत हिंदी अंगीकार नही था
नेताओं को स्वीकार नही था
अंग्रेजी बन गई उनकी जुबानी
मानसिकता में बस गई गुलामी
पर-भाषा को सिरमौर बताया
निज भाषा को गैर बनाया
नई पीढ़ी की हिंदी भाषा
शायद ही बन पाये आशा
हुई दुर्दशा हुआ अन्याय
मिली उपेक्षा मिला न न्याय
जन आदर्श हुये हैं जितने
ज्ञान रश्मि फैलाये जिसने
भक्त कवियों ने कही ये बात
है हिंदी में अपनत्व की बास
स्वीकार करें मन से ये भाषा
जिसको अनपढ़ भी पढ़ पाता
पहचान हिंद की हिंदी है
अभिमान हिंद की हिंदी है.
भारती दास ✍️
शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपका कहना सच है ... भाषा अभिमान तो है पर यदि अभिमानी लोग इसका प्रयोग भी करें तो दिन हिन्दी के संवर जाएँ ... सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteअपनी मां अपनी भाषा पर अभिमान नहीं तो किसपर हो सर