यह वर्ष है विक्षोभ का
दर्द क्लेश क्षोभ का
सद्भावना शून्य है
संवेदना नगण्य है
वेदना अपार है
तड़प हाहाकार है
मानवता दरकिनार है
सुरक्षा लाचार है
बिगड़ती हालात है
दुष्कर्म बढता घात है
विवशता मोहताज है
आशंकित समाज है
शास्त्री जी के देश में
है कमी कहां परिवेश में
गांधी जी के वेश में
है जीवन ही संदेश में
लक्ष्य सदैव भरपूर हो
अनगढ आदत दूर हो
अंतर्मन ना मजबूर हो
गांधी शिक्षण जरुर हो.
गांधी शास्त्री जयंती की हार्दिक
शुभकामनाएं
भारती दास ✍️
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अच्छी रचना है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteशास्त्री जी के देश में
ReplyDeleteहै कमी कहां परिवेश में
गांधी जी के वेश में
है जीवन ही संदेश में
लक्ष्य सदैव भरपूर हो
अनगढ आदत दूर हो..
बहुत सुन्दर भावों से सुसज्जित अत्यंत सुन्दर रचना ।